२०२ बगुला के पंख स्थापित कर दी। यहां तक कि अनिवार्य रूप से एक पुरुष की एक समय में एक ही स्त्री पत्नी रूप में रह सकती है। यह एकपत्नीव्रत अंग्रेज़ भारत में लाए और स्त्री-समानता का भाव भी, जिसे भारत के नव्य' जीवन का पूरा पोषण मिला। परन्तु एकपत्नीव्रत में बन्धन के साथ यूरोप का तलाक नहीं सम्मिलित हुआ, अतः हिन्दू पत्नी ज़रा-सा सामाजिक विकास पाकर भी शुद्ध- रूपेण पति की आर्थिक और सामाजिक दासता में बंधी हुई थी। और अब भी, जब उसके बन्धन एक-एक करके खोले जा रहे हैं, वह बंधी रहने की चिरन्तन अभ्यस्त बनी हुई है । श्रीमती बुलाकीदास ऐसी ही भारतीय महिला थीं। , लेकिन भूचाल आते-आते रह गया । ज्वालामुखी का भीषण विस्फोट होते- होते रुक गया। जुगनू अकस्मात् ही बीमार पड़ गया। घोर परिश्रम, अनियमित जीवन और गहरे मानसिक उद्वेग ने उसके रोग को संक्रामक रूप दे दिया। चिकित्सकों ने उसे टाइफाइड करार दिया। अब एक तरफ चुनावों की धूम मची हुई थी, दूसरी ओर जुगनू अपनी शय्या पर छटपटा रहा था। उसके चारों ओर आदमियों की, सेवकों की, परिचारकों की कमी न थी, पर आज वह जीवन में पहली ही बार एक नारी-स्पर्श के लिए छटपटा रहा था। यह स्पर्श की भूख उसकी कामवासना की भूख से पृथक् थी। वह अर्धजागरित स्वप्न देखा करता कि शारदा से उसका ब्याह हो गया है, और वह उसका सिर गोद में लिए बैठी सहला रही है। अांखें बन्द करके वह देर तक इस कल्पना को साकार करता रहता था, आज नारी को प्रात्मसात् करने के लिए उसका सम्पूर्ण पौरुष हाहाकार कर रहा था। अब उसे नवाब अच्छा नहीं लग रहा था, विद्यासागर की बातें भी उसे नहीं सुहाती थीं, चुनाव की तिकड़म और सफलताओं के प्रति वह उदासीन था। उसे इस समय चाह थी एक नारी के कोमलतम अस्तित्व की, जिसे वह पूर्णतया अपना सके । पद्मा, शारदा, गोमती, श्रीमंती बुलाकीदास, और भी जिनसे उसका परिचय हुआ था, दिन-रात में हज़ारों बार आ-आकर उसकी मानस-मूर्ति के आगे नाचती रहती थीं और वह
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