२२४ बगुला के पंख बात बढ़ती जा रही थी। भीड़ भी बढ़ती जा रही थी। गोमती में जैसे साक्षात् दुर्गा अवतरित हुई थी। वह किसी भी विधि-निषेध को न मानकर जुगनू के साथ जाने पर आमादा थी । सब स्त्री-पुरुषों ने उसे समझाया, लानत-मलामत दी, पर उसकी हठ जारी थी। उन्होंने उसे घेर लिया था। कुछ स्त्रियां कह रही थीं, देखो, यह बहू-बेटियों के लक्षण हैं। कुछ उसकी ओर घृणा से देख रही थीं। कुछ उसे समझा-बुझा रही थीं। मुहल्ले का वातावरण खराब होता जा रहा था, और जुगनू के प्रति रोष बढ़ता जा रहा था । कुछ युवक तू-तू, मैं-मैं करने और मारपीट को भी आमादा हो रहे थे। यह देख जुगनू वहां से खिसक चला। 'मुझे ले चलो, मैं यहां न रहूंगी। मैं जान दे दूंगी।' यह कहती हुई गोमती उन स्त्रियों से छूटने का ज़ोर लगा रही थी जिन्होंने उसे घेर लिया था। डेरे पर आकर जुगनू निढाल होकर पड़ गया । अभी रोग की उसे दुर्बलता थी। परन्तु अभी-अभी जो इतनी भारी घटना हो गई, खुल्लमखुल्ला दस आदमियों में उसकी इस कदर फजीहत हुई उसका उसके मन पर बुरा प्रभाव पड़ा । एक प्रकार के अवसाद में उसका मन डूब गया। उसे यह भी भय हुआ कि कहीं मुहल्ले के लोग राधेमोहन को बढ़ावा देकर कोई और फजीहत का काम न करा डालें । वह चार आदमियों को लेकर यहीं न आ धमके । या गोमती ही यहां आ पहुंचे और उसके पीछे-पीछे लोगों का मेला लग जाए। वह जिस हालत में गोमती को वहां चीखते-चिल्लाते छोड़ आया था, उसे देखते सब कुछ सम्भव हो सकता था। उसका मन भय, अवसाद और खीझ से भर रहा था। अभी-अभी उसने गोमती की खुली हिमायत की थी। पर अब उसे दीख रहा था कि वह कितना फूहड़ काम था। इस वक्त उसका डेरा आदमियों से भरा हुआ था। चुनाव की चहल-पहल का वह अड्डा हो रहा था । विद्यासागर ने उसके ड्राइंग रूम पर अधिकार जमाया हुआ था। गद्देदार कोचों पर ऊपर पैर रखे एक से बढ़कर एक बेहूदे, आवारा
पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/२२६
दिखावट