पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/२४८

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२४६ बगुला के पंख पद्मा रोने लगी। उसके रोने से उत्तेजित होकर जुगनू भभककर एकदम उठ खड़ा हुआ। उसने कहा, 'मैं अभी जाता हूं। वहां की परेशानी से घबरा- कर यहां आता हूं कि ज़रा शान्ति मिलेगी। पर यहां हरदम रोना-कलपना, शिकायत और सदा उदास मनहूस मुंह बनाए रखना- मुझे यह पसन्द नहीं है।' 'बैठ जाओ, नाराज़ न हो। जो बात तुम्हें पसन्द नहीं है, वह मैं न करूंगी। तुम्हें छोड़ मेरा कोई नहीं है। मेरे ऊपर दया करो, मुझे छोड़ने का इरादा न करो। मैं मैं बदनसीब औरत हूं, जिसका धरती-आसमान में तुम्हारे सिवा कोई नहीं है।' यह कहकर पद्मा जुगनू के दोनों पैरों को बांहों में समेटकर ज़मीन में लेट गई। ७८ जुगनू ने नवाव को बुलाकर कहा- 'लेकिन असल बात यह है कि मैं उससे ऊब गया हूं। और सबसे बड़ी बात यह है कि मैं उससे प्यार नहीं करता।' 'लेकिन तुम तो प्यार की बड़ी-बड़ी बातें करते थे।' 'जब करता था तब करता था। लेकिन अब नहीं। आदी का मन सदा एक-सा तो रहता नहीं है।' 'लेकिन अब वह जाएगी कहां । प्यार न सही, उसका ख्याल ही रखो । भई, औरत के साथ मर्द का प्यार साल-दो साल रहता है, इसके बाद तो अांखों का लिहाज़ रह जाता है। 'तुम समझते हो, आंखों के लिहाज़ से मैं उसके साथ रह सकता हूं ?' 'अजी साहब, लोग तो बड़ी-बड़ी बेढब औरतों के साथ उम्र काट देते हैं ; फिर वह तो खूबसूरत है पढ़ी-लिखी है, जवान है। तुम इस तोहफे को ठुकरा रहे हो !' 'तुम्हें भी तो एक औरत की जरूरत है नवाब, न हो तुम्हीं उसे रख लो।' 'लाहौल विला कूवत । दोस्त की औरत करें ! तौबा, तौबा।'