२५४ बगुला के पंख अपने दफ्तर के प्रधान से 'सब ठीकठाक है ?' यह प्रश्न करता था, और 'यस सर' का उत्तर पाकर संतुष्ट हो क्लब चला जाता था। वहां टेनिस खेलता, ब्रिज खेलता, शराब पीता, डान्स करता या उसका जो जी चाहे वाही-तबाही करता था। कभी-कभी शराब पीकर बदहोश हो जाता था। तब बैरा-खानसामा उसे मोटर में लादकर उसके बंगले पहुंचा देते थे। उसके क्लब में कोई हिन्दुस्तानी नहीं जा सकता था, न उसके कारनामे देख-जान सकता था। वह सबके लिए दुर्लभ था, महान था, अभूतपूर्व शक्ति-संपन्न अंग्रेज़ था। ८२ . पद्मा ने ये तीन महीने बड़ी ही बेसब्री से बिताए थे। जुगनू ने इस बीच उसे एक भी खत नहीं भेजा था न खर्च के लिए रुपया ही भेजा था। अलबत्ता नवाब उससे मिलता और रुपये-पैसे से मदद देता आ रहा था । परन्तु नवाब के रंग-ढंग से वह शंकित रहती थी। उसका चाहे जब उसके यहां चला पाना उसे अच्छा न लगता था। पर अब उसके सिवा उसे सहारा देनेवाला भी दूसरा कोई न था। उसे प्राशा थी कि लौटकर जुगनू उससे विवाह कर लेगा। पर लौटने पर जुगनू उससे सिर्फ दो बार ही मिला। और अब उसे पूरा एक महीना यहां आए हो रहा था। वह प्रतिदिन उसकी बाट जोहती थी, परन्तु उसे निराश होना पड़ता था। जुगनू मिनिस्टर हो गया था। इससे वह समझ रही थी कि वह उसके लिए और भी दुरूह हो गया है। विवाह की अाशा अब धुंधली हो चली थी। और अब वह उससे भयभीत होकर बात कर सकती थी। अपनी असहाय' अवस्था का अब उसे पूरा ज्ञान हो गया था । उस दिन आशा के विपरीत एक सरकारी खत मिला, जो वाणिज्यमंत्रालय से आया था। उससे अनुरोध किया गया था कि वह कृपा करके मन्त्री महोदय से उनके आफिस में मिले । पत्र का प्राशय' उसकी समझ में कुछ भी नहीं आया। किन्तु वह अनेकों शंकाओं को मन' में संजोए हुए आफिस में जाकर जुगनू से मिली। जुगनू ने औपचारिक रीति से उसकी अभ्यर्थना की। कुशल-मंगल पूछा और न पा सकने
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