बगुला के पंख भी ऐसे काम को, जिससे कांग्रेस का बोलबाला हो, नापसन्द न करेगी। फिक्र मत करो। जनता की भलाई का नारा बुलन्द रखो। भीतर तुम, और बाहर मैं । अखबार तुम्हारा ही राग गाएंगे।' 'मेरा राग क्यों गाएंगे ?' 'तुम रिश्ते में उनके साले होते हो न ?' 'साला कौन ?' 'जोरू का भाई। वह मसल नहीं सुनी-खुदा की खुदाई एक तरफ, जोरू का भाई एक तरफ ।' 'लेकिन यार, अखबारवालों से मेरा यह नया रिश्ता तुम कैसे कायम करते हो?' 'अजी सभी कांग्रेसी अखबारवालों के साले होते हैं। कांग्रेस उनकी जोरू और कांग्रेसी उनके साले । वे न कांग्रेस के सामने चूं कर सकते हैं, न कांग्रेस के खिलाफ आवाज़ उठा सकते हैं।' दोनों दोस्त खिलखिलाकर हंस पड़े। देर तक हंसते रहे। क्या ही नफीस जोड़ा किस्मत ने मिला दिया था ! एक था भंगी का बच्चा-परिस्थितियों के घोड़े पर सवार, और दूसरा था एक रंडी का दलाल-आठों गांठ कुम्मैत । जिनके आदर्श के धरातल पर न कोई धर्म-नीति थी, न नीति-धर्म । कुछ देर बाद जुगनू ने कहा, 'खैर, दूसरी बात?' 'दूसरी बात यह कि अब तुम अपने दोस्त के घर से डेरा-डंडा उठायो । स्वतन्त्र मकान में रहो। अपनी इज़्ज़त का पूरा ख्याल रखो।' 'लेकिन वहां तो मुझे कोई तकलीफ नहीं है। भाई साहब मेरा पूरा ख्याल रखते हैं। 'तो क्या इरादा है ! भाभी साहिबा के सामने उनके पालतू कुत्ते की हैसियत से उनकी ड्योढ़ियों पर ही पड़े रहना चाहते हो। उनके दिए टुकड़े खाने के लिए । अमा, अब उनके टुकड़े नहीं, उन्हें ही हजम करना है ।' 'लेकिन वे दोनों यह बात पसन्द न करेंगे।' 'इस बात से तुम्हें क्या सरोकार ? तुम्हें अब उनके पास इस तरह रहना पसन्द न होना चाहिए और तुम्हारी ही राय सबसे ऊपर होनी चाहिए । समझे ?' 'यह तो उस्ताद कुछ जंचती नहीं।'
पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/९०
दिखावट