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पृष्ठ:बाल-शब्दसागर.pdf/१६२

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साई दूसरे से कराना । कसाई -संज्ञा पुं० [स्त्री० क्रसाइन ] वधिक | वि० निर्दय | कसाना - क्रि० स० स्वाद में कसैला हो जाना । काँसे के योग से खट्टी चीज़ का बिगड़ जाना । क्रि० स० दे० "कसवाना" । कसार - संज्ञा पुं० पंजीरी । कसाघ- संज्ञा पुं० कसैलापन | कसावट - संज्ञा स्त्री० खिंचावट । कसीदा -संज्ञा पुं० दे० " कशीदा " । कसीदा - संज्ञा पुं० उर्दू या फ़ारसी भाषा की एक प्रकार की कविता, जिसमें प्रायः स्तुति या निंदा की जाती है । कसभा - वि० कुसुम के रंग का । लाल । कसूर - संज्ञा पुं० अपराध । क़सूरमंद, कसूरवार - वि० दोषी । कसेरा - संज्ञा पुं० [स्त्री० कसेरिन] कसे, फूल आदि के बरतन ढालने और बेचनेवाला | कसेरू - संज्ञा पुं० एक प्रकार के मोथे की गँठीली जड़ जो मीठी होती है । कसैला- वि० [स्त्री० कसैली ] कषाय स्वादवाला । कसैली | - संज्ञा त्रो० सुपारी । कसोरा - संश पुं० कटोरा । कसौटी - संज्ञा स्त्री० १. एक प्रकार का काला पत्थर जिस पर रगड़कर सोने की परख की जाती है । २. परीक्षा । कस्तूर - संज्ञा पुं० कस्तूरी मृग । कस्तूरा - संज्ञा पुं० कस्तूरी मृग । कस्तूरिका - संज्ञा स्त्री० कस्तूरी । १५४ कस्तूरिया - संज्ञा पुं० कस्तूरी मृग । वि० कस्तूरी - मिश्रित । कस्तूरी - संज्ञा स्त्री० एक प्रसिद्ध सुगं- धित द्रव्य जो एक प्रकार के मृग की नाभि से निकलता है। कस्तूरी मृग-संज्ञा पुं० बहुत ठंडे पहाड़ी स्थानों में होनेवाला एक प्रकार का हिरन जिसकी नाभि से कस्तूरी निकलती है। कह - प्रत्य० कर्म और संप्रदान का चिह्न 'को' |

  • क्रि० वि० दे० "क" । कहत - संज्ञा पुं० दुर्भिक्ष कहता - संज्ञा पुं० कहनेवाला पुरुष । कहन - संज्ञा स्त्री० १. कथन । २. कहावत ।

कहना - क्रि० स० वर्णन करना । संज्ञा पुं० कथन | कहनावत - संज्ञा स्त्री० कहावत । कहनूत - संज्ञा स्त्री० कहावत । कहलना- क्रि० प्र० १. कसमसाना ! २. दहलना । कहलवाना - क्रि० स० दे० "कह लाना" । कहलाना - क्रि० स० १. दूसरे के द्वारा कहने की क्रिया कराना । २. सँदेसा भेजना | क्रि० अ० ऊमस या गरमी से व्याकुल या शिथिल होना । कहाँ+ - क्रि० वि० दे० "कहाँ" । कहवा -संज्ञा पुं० एक पेड़ का बीज जिसके चूर को चाय की तरह पीते हैं 1 कहवाना+- क्रि० स० दे० " कह- लाना" । कहवैया + - वि० कहनेवाला । कहाँ - क्रि० वि० किस जगह ।