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अक्षय नवमी १७ श्रखरा शुक्ल तृतीया । श्राखा तीज । (स्नान-दान ) अक्षय नवमी -संज्ञा स्त्री० कात्तिक शुक्ला नवमी । (स्नान दान आदि) अक्षयवट - संज्ञा पुं० प्रयाग और गया में एक बरगद का पेड़, पौराणिक जिसका नाश प्रलय में भी नहीं मानते । अक्षय्य - वि० अक्षय । अविनाशी | अक्षर - वि० श्रविनाशी । नित्य । संज्ञा पुं० १. अकारादि वर्ण । हरफ़ । २. आत्मा । ३. ब्रह्म । ४. श्राकाश । ५. धर्म । ६. तपस्या । ७. मोक्ष | ८. जल । अक्षरशः - क्रि० वि० एक एक अक्षर । बिलकुल | सब | अक्षरेखा-संज्ञा स्त्री० वह सीधी रेखा जो किसी गोल पदार्थ के भीतर केंद्र से होकर दोनों पृष्ठों पर लंब रूप से गिरे । समूचा । अक्षोट - संज्ञा पुं० अखरोट | अक्षोनी - संज्ञा स्त्री० दे० "श्रतौ- हिणी" । अक्षोभ - संज्ञा पुं० छोभ का प्रभाव | शाति । वि० १. शांत । २. मोहरहित । ३. निडर | अक्षौहिणी -संज्ञा स्त्री० पूरी चतुरं- गिणी सेना जिसमें १,०६,३५० पैदल, ६५,६,१० घोड़े, २१,८,७० रथ और २१,८,७० हाथी होते थे । श्रक्स - संज्ञा पुं० १. प्रतिबिंब छाया । २. तसवीर । 1 अक्सर - क्रि० वि० दे० "अकसर " 1 अखंड - वि० १. जिसके टुकड़े न हों । २. लगातार । ३. बेशक । निर्विघ्न । श्रखंडनीय - वि० १. जिसके टुकड़े न हो सकें । २. जिसके विरुद्ध न कहा जा सके । पुष्ट । युक्तियुक्त । अखंडल - वि० १. अखंड । २. समूचा । संज्ञा पुं० दे० " श्राखं डल" । " अखड़ेत - संज्ञा पुं० मल्ल । बलवान् पुरुष । श्रखती, श्रखतीज - संज्ञा स्त्री० अक्षरौटी - संज्ञा स्त्री० १. वर्णमाला | २. लेख । ३. वे पद्य जो क्रम से वर्णमाला के अक्षरों को लेकर श्रारंभ होते हैं। अक्षांश -संज्ञा पुं० १. भूगोल पर उत्तरी और दक्षिणी ध्रव के अंतर के ३६० समान भागों पर से होती हुई ३६० रेखाएँ जो पूर्व पश्चिम मानी गई हैं । २. वह कोण जहाँ पर क्षितिज का तल पृथ्वी के श्रम से कटता है । ३. भूमध्य रेखा और किसी नियत स्थान के बीच में या- म्योत्तर का पूर्ण झुकाव या अंतर । श्रक्षि-संज्ञा स्त्री० आँख । नेत्र । अनुराग - वि० बिना टूटा हुआ । अखरा - वि० झूठा । बनावटी । २ "अक्षय तृतीया " । श्रखुनी -संज्ञा स्त्री० मांस का रसा । शोरबा | अखबार - संज्ञा पुं० समाचारपत्र | संवादपत्र | ख़बर का काग़ज़ | अखरना- क्रि० स० खलना । लगना । बुरा