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अभ्र श्रभ्र - संज्ञा पुं० १. मेघ । २. आकाश । अभ्रक - संज्ञा पुं० अबरकु । भोडर । अभ्रांत - वि० भ्रांति - शून्य । श्रमंगल - वि० मंगलशून्य । श्रशुभ । श्रमंद - वि० [सं०] १. जो धीमा न हो । तेज़ । २. उत्तम । श्रमचूर - संज्ञा पुं० सुखाए हुए कच्चे श्रम का चूर्ण । श्रमड़ा - संज्ञा पुं० एक पेड़ जिसमें श्राम की तरह के छोटे छोटे खट्टे फल लगते हैं श्रमन - संज्ञा पुं० १. शांति । चैन । २. रक्षा | बचाव । श्रमनिया - वि० शुद्ध । पवित्र । संज्ञा स्त्री० रसोई पकाने की क्रिया । (साधु) । अमर - वि० [सं०] जो मरे नहीं । चिरजीवी । संज्ञा पुं० [सं०] [ स्त्री० अमरा, अमरी] देवता । २. श्रमरख -संज्ञा पुं० [स्त्री० अमरखी ] १. क्रोध । गुस्सा । रिस । क्षोभ । रंज । श्रमरपख-संज्ञा पुं० पितृपक्ष । श्रमरपद - संज्ञा पुं० मुक्ति । अमरपुर - संज्ञा पुं० [स्त्री० अमरपुरी ] अमरावती । देवताओं का नगर । श्रमरवेल - संज्ञा स्त्री० एक पीली लता या बौर जिसमें जड़ और पत्तियाँ नहीं होतीं । श्राकाश- बौर । अमरलोक-संज्ञा पुं० इंद्रपुरी । देव- लेक | स्वर्ग । श्रमरवल्ली - संज्ञा स्त्री० अमरबेल । अमरस-संज्ञा पुं० दे० "अमावट" । अमरसी - वि० [हिं० भामरस ] ग्राम के रस की तरह पीला | सुनहला । ५२ श्रमली अमराई + - संज्ञा स्त्री० ग्राम का बाग़ । श्रमरालय -संज्ञा पुं० स्वर्ग । अमरावती -संज्ञा स्त्री० देवताओं की पुरी । श्रमरी - संज्ञा स्त्री० १. देवता की स्त्री । २. एक पेड़ । सग | श्रमरू - संज्ञा पुं० एक प्रकार का रेशमी कपड़ा । श्रमरूत - संज्ञा पुं० एक पेड़ जिसका फल खाया जाता है । अमरेश - संज्ञा पुं० इंद्र | अमर्याद - वि० [सं०] मर्यादा - विरुद्ध । बेकायदा | श्रमर्ष-स -संज्ञा पुं० [वि० अमर्षित, श्रमर्षी ] १ क्रोध । रिस । २. असहिष्णुता । श्रक्षमा । श्रमर्षण - संज्ञा पुं० क्रोध । रिस । श्रमर्षी - वि० [स्त्री० अमर्षिणी] असहन- शीत । श्रमल - वि० निर्मल । स्वच्छ । संज्ञा पुं० १. व्यवहार । आचरण । २. साधन । ३. अधिकार । अमलतास - संज्ञा पुं० एक पेड़ जिसमें लंबी गोल फलियाँ लगती हैं । श्रमलदारी-संज्ञा स्त्री० अधिकार । दखल | श्रमलवेत-संज्ञा पुं० एक प्रकार की लता जिसकी सूखी हुई टहनियाँ खट्टी होती हैं और चूर्ण में पड़ती हैं। श्रमला - संज्ञा स्त्री० १. लक्ष्मी । २. सालता वृष । संज्ञा पुं० कर्मचारी । कचहरी में काम करनेवाला | श्रमली - वि० [अ०] १. व्यावहारिक । २. अमल करनेवाला ।