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पृष्ठ:बाल-शब्दसागर.pdf/६९

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खड़ी लंबी लकड़ी । साह । अलील - वि० बीमार । रुग्ण । श्रलीह - वि० मिथ्या । अलुक - संज्ञा पुं० व्याकरण में समास का एक भेद जिसमें बीच की विभक्ति का लोप नहीं होता 1 जैसे - सर- सिज, मनसिज । लेख - वि० जिसके विषय में कोई भावना न हो सके। दुर्बोध । श्रज्ञेय । वि० श्रदृश्य । श्रलेखा - वि० बे हिसाब | श्रलेखी - वि० १. बे हिसाब या अंडबंड काम करनेवाला | अन्यायी । २. अलोक - वि० १. श्रदृश्य । २. निर्जन । एकांत । संज्ञा पुं० १. पातालादि लेक | पर- लोक । २. मिथ्या दोष । कलंक | निंदा | अलाना - वि० [स्त्री० अलोनी] १. जिसमें नमक न पड़ा हो । २. फीका । स्वाद- रहित । बेमज़ा । तोप - वि० दे० "लेप" । अलौकिक - वि० १. जो इस लोक में न दिखाई दे । २. अद्भुत । अल्प - वि० [सं०] १. थोड़ा । कम । २. छोटा । अल्पश - वि० [सं०] १. थोड़ा ज्ञान रखनेवाला । छोटी बुद्धि का । २. नासमझ । अल्पता - संज्ञा स्त्री० [सं०] कमी । अल्पप्राण - संज्ञा पुं० १. व्यंजनों के प्रत्येक वर्ग का पहला, तीसरा और पाँच अक्षर तथा य, र, ल और व । २. चिड़चिड़ा | अल्पश:- क्रि० वि० [सं०] थोड़ा थोड़ा ६१ श्रवगाह करके । धीरे धीरे । क्रमशः । अम्ल - संज्ञा पुं० वंश का नाम । उप- गोत्रज नाम । जैसे- पाँडे, त्रिपाठी, मिश्र । अल्लामा | - वि० स्त्री० कर्कशा । ल- ड़की । अल्हड़ - वि० १. मनमौजी । २. बिना अनुभव का । ३. उद्धत । ४. अना- गँवार । संज्ञा पुं० नया बैल या बछड़ा जो निकाला न गया हो । श्रवंती - मंज्ञा स्त्री० [सं०] उज्जैन । उज्जयिनी । श्रव - उप० एक उपसर्ग । यह जिस शब्द में लगता है, उसमें विन- लिखित श्रर्थों की योजना करता है- निश्चय, अनादर, न्यूनता या कमी, निचाई या गहराई, व्याप्ति । ॐ अव्य० दे० "और" । अवकलन - संज्ञा पुं० [वि० अवकलित ] १. इकट्ठा करके मिला देना । २. देखना । ३. जानना । ज्ञान । ४. ग्रहण | अवकाश-संज्ञा पुं० १. रिक्त स्थान । २. आकाश । ३. दूरी । फासिला । ४. अवसर । ५. खाली वक्तु । फुर्सत । छुट्टी । अवगत - वि० १. विदित । ज्ञात । २. गिरा हुआ । अवगति -संज्ञा स्त्री० १. बुद्धि । २. बुरी गति । अवगाह - वि० १. अथाह । बहुत गहरा । २. अनहोना । कठिन । * संज्ञा पुं० १. गहरा स्थान । २. संकट का स्थान | कठिनाई । संज्ञा पुं० १. भीतर प्रवेश करना ।