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पृष्ठ:बाल-शब्दसागर.pdf/७६

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अष्टाध्यायी वि० [सं० ] आठ अक्षरों का । श्रष्टाध्यायी - संज्ञा स्त्री० पाणिनीय व्याकरण का प्रधान ग्रंथ जिसमें श्राठ अध्याय हैं । अष्टावक्र -संज्ञा पुं० १. एक ऋषि । २ टेढ़े-मेढ़े अंगों का मनष्य । श्रसंक - वि० दे० " अशंक" । संक्रांति मास-संज्ञा पुं० श्रधिक मास । मलमास । असंख्य - वि० अनगिनत | असंग - वि० [सं०] १. अकेला । एकाकी । २. निल' । असंगत - वि० प्रयुक्त । बेठीक | असंगति-संज्ञा स्त्री० [सं० ] बेसिल- सिलापन | बेमेल होने का भाव । असंबद्ध - वि० [सं०] १. जो मेल में न हो । २. पृथक । ३. अनमिल । असंभार - वि० १. जो सँभालने योग्य न हो । २. अपार । बहुत बड़ा । असंभाव्य - वि० जिसकी संभावना न हो। अनहोना । असंभाष्य - वि० १. न कहे जाने योग्य । २. जिससे बातचीत करना उचित न हो । बुरा। असंयत-वि० [सं०] संयम-रहित । असंस्कृत - वि० [सं०] बिना सुधारा हुआ। जिसका उपनयन संस्कार न हुआ हो । अल-वि० इस प्रकार का । ऐसा । असकताना- क्रि० भ० श्रालस्य में पढ़ना । श्रालसी होना । असगंध - संज्ञा पुं० [सं० अश्वगंधा ] एक सीधी झाड़ी जिसकी मोटी जड़ पुष्टई और दवा के काम में आती हैं । अश्वगंधा । ६८ श्रसमाप्त सगुन - संज्ञा पुं० दे० " अशकुन" । असत् - वि० [सं०] १. अस्तित्व - विहीन । सत्ता-रहित । २. बुरा । ३. प्रसाधु । सत्ता-संज्ञा स्त्री० [सं० ] सत्ता का अभाव । अनस्तित्व | असत्य - वि० [सं०] मिथ्या । झूठ । श्रसबर्ग - संज्ञा पुं० [फा० ] खुरासान की एक लंबी घास जिसके फूल रेशम रँगने के काम में श्राते हैं। असबाब - संज्ञा पुं० चीज़ । वस्तु । सामान । श्रसभई | -संज्ञा स्त्री० अशिष्टता । बेहू- दगी । असभ्यता | असभ्य - वि० अशिष्ट । गँवार । असभ्यता-संज्ञा स्त्री० श्रशिष्टता । असमंजस - संज्ञा स्त्री० दुबधा । आगा- पीछा । श्रसमंत - संज्ञा पुं० [सं० अश्मंत ] चूल्हा | असम - वि० [सं०] १. जो सम या तुल्य न हो । २. ऊँचा-नीचा । ऊबड़-खाबड़ । समय - संज्ञा पुं० विपत्ति का समय । क्रि० वि० कुश्अवसर । बे मौका | असमथ - वि० [सं०] सामर्थ्यं हीन । दुर्बल श्रसमशर - संज्ञा पुं० कामदेव । असम्मत- वि० [सं०] १. जो राजी न हो । २. जिस पर किसी की राय न हो । असमान वि० [सं०] जो समान या तुल्य न हो । + संज्ञा पुं० दे० "आसमान” । असमाप्त-वि० [संज्ञा असमाप्ति ] अपूर्ण । अधूरा ।