पृष्ठ:बाहर भीतर.djvu/२४५

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२५० विधवाश्रम और पुरुप एकत्रित थे। सभास्थल खचाखच भर रहा था। थोडी देर बैण्ड बज चुकने के बाद सभा की कार्यवाही प्रारम्भ हुई। भीतरी ओर का एक छोटा-सा दरवाज़ा खुला और उसमे से पाच-छह आदमी निकले । ये सब अन्तरंग सभा के सदस्य थे। इन्हीमे हमारे पूर्वपरिचित डाक्टर साहब तथा अन्य सत्पुरुष भी थे। उनके आते ही सभा मे तालियो की गड़गडाहट से सभा भवन गूज उठा। इसके बाद ही लाला जगन्नाथजी ने चिल्लाकर कहा-मै प्रस्ताव करता हूं कि आज की सभा मे हमारे परम श्रद्धास्पद, आदरणीय श्री डाक्टर साहब सभापति का स्थान ग्रहण करे।-गजपति ने प्रस्ताव का अनुमोदन किया । अब डाक्टर साहब भाति-भाति के मुह बनाए, उसी प्रकार टेढ़ी गर्दन किए, विविध रीति से शिष्टा- चार प्रदर्शन करते हुए अति दीन-भाव से सभापति के आसन पर जा बैठे, मानो उन्हे फासी लगाई जा रही र्थी । उनके आसीन होते ही फिर तालिया बजी । अब एक महाशय जी बडा-सा साफा सिर पर लपेटे उठ खडे हुए और बडे गर्वीले ढग से खड़े होकर एक भजन गाना प्रारम्भ किया। भजन क्या था, गद्य-पद्य का सम्मि. श्रण था। न सुर, न ताल । वे खूब चीख-चीखकर गाने लगे और साथ ही हार- मोनियम भी बजाने लगे। हारमोनियम खूब चीख रहा था ।अन्तत.लोगो के कानो के पर्दे फटने लगे और वह गायन समाप्त हुआ। इसके बाद डाक्टर साहब ने खड़े होकर वक्तृता देनी प्रारम्भ की : "भाइयो और देवियो ! आज आपके आश्रम का द्वितीय वार्षिक उत्सव है। इस अवसर पर इतने आदमियों को एकत्रित देखकर मै फूला नही समाता हू । अभी मन्त्रीजी आपको रिपोर्ट सुनाएगे। उससे आपको मालूम होगा कि अधो- गति के मार्ग मे पतित भ्रष्टा स्त्रियो को पतन के महापक से उद्धार करने मे आश्रम ने समाज की कितनी सेवा की है। ईश्वर की कृपा और आप लोगो की सहानु- भूति से सस्था खूब सफल हो रही है (हर्षध्वनि)। परन्तु अभी लाखों-करोड़ो अनाथ विधवाए है, जिनका उद्धार होना बाकी है (सुनो-सुनो) । काम बड़ा कठिन है, और उसे यह आश्रम ही पूरा कर सकता है। सज्जनो, आर्यपुरुषो, क्या आप इस आश्रम से सहानुभूति नही रखते हैं ? (हर्षध्वनि)क्या आप इसकी हस्ती को कायम रखना चाहते हैं ? (अवश्य-अवश्य) तब मैं आशा करता हूं कि आप अपनी जेबो, मे जो हाथ आश्रम के नाम पर डालेगे, वह खाली बाहर न आएगा। आपको यह स्मरण रखना चाहिए कि जो-जो महाशय चन्दा देंगे, उनका नाम-ठिकाना सब