जेल और पत्र वापू के समान कामकाजी आदमी दुनिया में बहुत कम मिलेंगे। उन्होने जितने लेख और पत्र अपने साठ वर्ष के सामा- जिक जीवन मे लिखे, उतने शायद ही किसी दूसरे ने लिखे हो। इन लेखो और पत्रो को यदि इकट्ठा किया जाय तो दस हजार पृष्ठ का ग्रन्थ तैयार हो जाय । उनको डाक्थैला भर आतो थी। दुनिया का ऐसा कोई देश न था, जहां से उनका पत्र व्यवहार न रहता हो। यह आश्चयजनक बात है कि वे प्रत्येक पन का उत्तर अविलम्ब अपने हाथ ही से अधिकाश मे लिखकर देते थे। डाक के समय के वे बडे पावद थे । यात्रा मे जहा पहुचते, वे सबसे प्रथम डाक के सम्बध मे व्यवस्था करते थे और इस बात का ध्यान रखते कि डाक समय पर आ गई या नहीं। जिस दिन 'हरिजन' मे लेख भेजे जाते, उस दिन को व्यस्तता देखने योग्य होती। कितना मैटर तैयार हो गया, इसकी सूचना उहे मिलती रहती। जो कमी रहतो-उसे वे स्वय पूरा करते। यही कारण है कि उन्हाने अत्यन्त व्यस्त लम्बी-लम्बी यात्राए की, परन्तु उनका साप्ताहिक कभी देर से नहीं निकला। मैटर भेजने के दिन भी कभो रात-रात भर टाइप को मशीन चलती रहती। दूसरी ओर अग्रेजी लेखो का हि दी, उर्दू और गुजराती मे अनुवाद होता रहता। वही टिकट लगाकर लिफाफे तयार होते,कही लेखो की सूची बनाई जाती। बार-बार पूछने, सव कुछ तैयार हो गया