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श्री ठाकुर राजबहादुर सिंह जी,
वी० ए०, एल-एल० बी० ।
भैया,
'मेरी यह कृति, तुम्हारी ही मधुर कृपा और सरल स्नेह का स्वरूप है; अतएव तुम्हें छोड़कर इसे किसके हाथों में हूँ ?
तुम्हारी बहन
- सुभद्रा
श्री ठाकुर राजबहादुर सिंह जी,
वी० ए०, एल-एल० बी० ।
भैया,
'मेरी यह कृति, तुम्हारी ही मधुर कृपा और सरल स्नेह का स्वरूप है; अतएव तुम्हें छोड़कर इसे किसके हाथों में हूँ ?
तुम्हारी बहन
- सुभद्रा