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बिखरे मोती ]
 


घर मालूम होता था। कमरे में चारों तरफ़ चार बड़े-बड़े शीशे लगे थे । दरवाजो और खिड़कियों पर सुन्दर रेशमी परदे लटक रहे थे । दीवालों पर बहुत-सी अश्लील और साथ ही सुन्दर तसवीरें लगी हुई थीं । एक तरह एक वढ़िया ड्रेसिंग टेबिल रखा था, जिस पर श्रृंंगार का सब सामान सजाया हुआ था, बड़ी-बड़ी आलमारियों में क़ीमती रेशमी कपड़े चुने हुए रखे थे । जमीन पर दरी थी; दरी पर एक बहुत बढ़िया कालीन बिछा था । क़ालीन पर दो-तीन मसनद क़रीने से रखे थे। आस-पास चार-छै आराम कुर्सियां और कोच पड़े थे। चम्पा मसनद पर गिर पड़ी और खूब रोई। थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला और एक बुढ़िया खाने की सामग्री लिए हुए अन्दर आई । भोजन रखते हुए वह बोली, यह खाना है खालो; अब रो पीटकर क्या करोगी ? यह तो, यहाँ का, रोज़ ही का कारोबार है।

चम्पा ने भोजन को हाथ भी न लगाया । वह रोती ही रही और रोते-रोते कब उसे नींद आ गई, वह नहीं जानती। सवेरे जब उसकी नींद खुली, तब दिन चढ़ आया था । वहाँ पर एक स्त्री पहले ही से उसकी कंघी चोटी करने के

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