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पृष्ठ:बिरजा.djvu/३४

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 खोल कर, देख देख कर, देता जाता है एक जलाता जाता है। बाबू ने आज बहुत से पत्र देखकर दिये। देखते २ एक बंगलापत्र उनके हाथ में आया। पत्र मोटे श्रीरामपुरी कागज पर लिखा था। बाबू ने पत्र खोला, देखा कि उस में एक स्त्री का नाम स्वाक्षरित है। उन्होंने पत्र पाकेट में रख लिया। और मन मन में विचारा कि यह किसी सुन्दरी की प्रणयपत्रिका होगी। घर चलकर पढ़ेंगे। पत्र पाकेट में रहा, वह अपने कर्न्म में व्यावृत हुये।

इन बाबू का घर शिमले (कलकत्त की वीथीविशेष) में था। बाबू अपरान्ह में घर आय कर विश्राम कर हैं इसी समय में उन्हें उस पत्र की बात स्मरण आई। वह पत्र को पाकेट से निकालकर पढ़ने लगे।

इन बाबू का वय:क्रम प्रायः तीस वर्ष का था इस वयस में बंगाली बाबू अविवाहित नहीं रहते हैं किन्तु इन्हीं ने विवाह किया था, वा नहीं, यह हम नहीं जानते, क्रम से जाना जायगा।

पत्र पढ़ते पढ़ते बाबू का ललाट स्वेदार्द्र हो गया, बदन में आनन्द, विस्मय, प्रभृति नाना मानसिक भावों के प्रतिबिम्ब अङ्गित होने लगे जिस पत्र को पढ़कर बाबू के मन में इस प्रकार का भावोदय हुआ, उसका अनुवाद यहां लिखते हैं।