का बदनकमल भी विपन्न हो जाता है, वैसे ही वारिद खण्ड को कृष्णकाय देखकर पतितपावनी भागीरथी भी कृष्णकाय हो गईं।
इस समय एक नौका गङ्गा में होकर नवद्वीप से कलकत्ते के अभिमुख जाती थी। वह नौका आषाढ़ मास की गङ्गा के तीक्ष्ण स्रोत के वेग में पूर्व पर होकर द्रुत गमन से जा रही थी, आरोही लोग छप्पर के भीतर थे और अति असमय में आहार करके सो रहे थे। आकाश में जो निविड़ कृष्णवर्ण मेघ छा रहा है यह उनलोगों ने नहीं देखा जिस स्थान में होकर नौका जाती थी, वह स्थान ऐमे विपद् के समय नौका ठहरने के उपयुक्त नहीं थी। आकाश में जो कृष्णकाय मेघ उपस्थित हो रहा था उसे नौका के केवल एक प्रधान माझी ने देखा और देखते ही बड़ा भयभीत हुआ उपयुक्त स्थान पाने से वह उसी क्षण नौका ठहरा देता, परन्तु स्थान नहीं था। इसी समय जो लोग नौका की सन्मुख दिशा में बैठकर बल्ली चला रहे थे, उनमें से एक जन ने अनुच्चैःस्वर से माझी से सम्बोधन करके कहा कि "दादा क्या अनुमान करते हो?" माझी ने कहा "और क्या अनुमान करूँगा देखते नहीं हो कि सब पक्षी नाच रहे हैं?" पश्चात् भाग से आरोही लोग कहीं न सुन लें और सुन करके भीत न हों इस निमित्त उन्होंने अनुच्चैः स्वर