पृष्ठ:बिरजा.djvu/८

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के समय जिस प्रकार सहज में बाहर जा पहुँचें ऐसे स्थान में खड़े रहे, बाबू की यह दशा देखकर बसरुद्दीन निकट आय कर कहने लगा "बाबू! तुम्हें डर लगता है? डरो मत, यदि नाव डूबै, तो हमारे रहते नहीं मरोगे"।

चारों ओर अन्धकार करके भयानक झड़ वृष्टि होने लगी। नदी का कूल नहीं दृष्ट होता था। विपद निश्चित जानकर सब ईश्वर का नाम लेने लगे। युवक नास्तिक था, परन्तु इस समय उसने भी विपदबान्धव ईश्वर के ऊपर आत्मसमर्पण किया। इति मध्य में पुनर्वार दमका वायु ने आकर नौका जलमग्न कर दीं।


द्वितीयाध्याय।

गंगा के उभय तीर गंगा यात्रियों के वास करने के लिये स्थान स्थान में घर बने हुये हैं उन्हें "मुर्दे का घर" कहते हैं। किसी को जीवन संशय पीड़ा होने से उसके आत्मीय लोग उसे वहां लाकर उसी घर में रखते हैं, गंगाप्रदेश के अति दूरवर्ती स्थानों में भी मरणासन्न पीड़ित लोग इसी भांति गंगा तीर पर लाये जाते हैं।

पाठक को उस समय हमारे संग एक मुर्दे के घर में जाना होगा। यह देखो! एक पट्टे पर एक जन वृद्ध प्राण संशय पीड़ित होकर पड़ा है। उसकी शय्या के पार्श्व में उसके दो पुत्र बैठे हैं। और यह वृद्धा जो आसन्नमरण