पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१६५

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(मेघ) बिरहवारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। १३७ मित्रके शीशसों शीशमारों ॥ वृथाप्रेम के सिंधु में मोहिंडारी। गयोत्याग ऐसी करी है चकारी ।। खरीसौतसी पारीन कारी। सबैलायवे योगवे माधवारी॥ सो० बीत्यो मास असाढ़ सावन तनतावन लग्यो। विरहिन केहियगाढ़ मनभावन दावन बिना ।। चौ० सावनसखीलग्योतनतावन । क्योंजीवै विरहीमनभावन॥ सजलघटा चहुंदिशिते धावत । मनहुं मतंग जंग कहावत ॥ ररत' मयूरचंचला छहरे । विन भावन बिरही हियलहरे॥ घहर घटा गर्जन जनि छहरति । विहरत गिरिविरहीतरलूटति॥ पीउ २ चात करटलागी । बिरही हिये लगावत आगी। बिन माधोहों कलनहिंपाऊं। मित्र चिमुखकिहि शरणमनाऊ॥ सो. मेघयिमध धूमही विरहिन तालिब इल्म । महिरम बेमालूम विरहकिताव पढ़ावसी ।। (श्रावण) छंदमोतीदाम । सखी सुन सावन आवन कीन्ह । भई विन भावन हौं अतिदीन॥ खरी यह कोकिल कूकत बीर । लगविन भावनमोहि यतीर ॥ चपैचपला छहरैघनमाहँ । चलैचमकाय वियोगिन काहँ ॥ महाधन घोरतफोरतकान ।रे रेमुखानहरेमम प्रान ॥ मनै धुरवालहरै भुवआय। मनौबिरही बधजाल उपाय। बढ़ी सरिता हरतासब भूमि । दशौ दिशि मेघरहै तिमझूम ।। चलेतहँतीक्षण वेगवयार। लगैबिरही हियज्यों कठफार ।। लगे वर्षावर्षा वनमेह । खड़े चुचुवात वियोगिन गेह ।। सो. मेरीचेदनबीर हरिवझौसा वृध्वेद । जरसुकै माधोधीर देहगये देही रहै ।। स० । ऋतुपावस श्याम घटाउनई लखिके पनधीर धिरातु नहीं। धुनदादुरमो रपपीरन कीलखि कैक्षण चित्ताधिरात नहीं।। जबते मनभावनतेबिछुरी तवते१८हिय दाह सिरातनहीं।हमको