पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/१८

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लावती को स्वम में देखने के कारण बिरहवंत होना तथा पहु- पावती नगरी में माधवानल और लीलावती की प्रीते होनेका सम्पूर्ण वृत्तान्त कहती भई जिसको सुनि राजा विक्रमादित्य ने राजा कापसेन तथा माधवानल को बुलवाया और कामसे- नके सन्मुख माधवानल से लीलावती का सम्पूर्ण हालसुनाया इसके उपरांत दोनों राजाओं ने अपनी २ सैन्य सजवाय पहु- पावती नगरी को पयान किया और कुछदिवस मार्ग में व्यतीत कर पहुपावती नगरी के निकट डेरा किया इनके आनेसे पहु. पावती नगरी में पुरवासियों में चरचा फैली कि जिसबाह्मणको देशनिकाला दिया था सोअब वह ब्राह्मण कामावती तथा उ- ज्जैनपतीको साथले आया है और जब यह चरित्र लीलावती की सुमुखी सखी को विदित हुआ तो उसने भी प्राय लीला- वती से वृत्तान्त प्रगट किया पश्चात् उसे पंचखंडा में लेजाय माधव को बताय और राजा कामसेन वा विक्रमादित्य की सै- न्यको बतलाती भई अब राजा विक्रमादित्य के डेरेका वृत्ता- न्त सुनिये किजब राजा सब से निश्चिंत हुआ तब माधवानल और श्राप कुछ सवार साथले रथ पर बढ़पहुपावतीकी शोभा देखने के निमित्त उसीओर चला और चारों ओर से बागोंतड़ा- गोंकी शोभा देखता हुआ चौक बजार में पहुंचा और वहां से राजभवन और लीलावती के निवास स्थानकी शोभा देखता हुआ आगे बढ़ा कि इतने में एक इतने आय हाथ जोड़ यह बिनयकी कि हे नरनाथ आपकी भेटके हेतु राजा गोविंदचंद आते हैं ऐसा सुनतेही राजा विक्रमादित्य ने वहां पर तंबूतान- ने की आज्ञा की और तुरंतही डेरा खड़ा कर उसे सवप्रकार से सुशोभित किया कि इतने में राजा गोविंदचंद भी उपस्थित हये और राजा विक्रमादित्यने उनकी आगत स्वागतकर हाथ मिलाय सिंहासनपर विराजमान किया पीछे आपभी सिंहासन पर बैठगथे पश्चात् गोविंदचंद ने सबकार विनतीकर कहा कि