पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/४१

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बिरहबारीशमाधवानलकामदलाचरित्रभाषा । १३ सो०। उच्चाटन शरलाय मोहन शोकन उनमदन । मनमथ अतिहरपाय मारनशरपंचमलग्यो । चौकानवअवस्तबिरहीतनजवहीं अतनसतनवरणतकवितवहीं॥ दरशन प्रायमदन तब दीन्हा । अतिही आयउदीपन कीन्हा॥ छंदगीतिका । यहचरितलखिरतिनाथको प्रज्वलिततनबनिता भई। अतिकोप सातुकलोपके यहघोरशापतिन्हेंदई । लखि विरहवस जस मोहिं खिझावत जुलिन ब्याकुल चालमें। तिमि होउगे दंपतिषियोगी कठिन तिहि कलिकालमें ॥ करनीन लै अतिदीनहो बनबन फिरो विरहानचै। पुनि द्वारद्वार पुकार करडू भेषपोगीको रचे । पुनि शापयो त्रैतापयुत रतिनाथहाथ दुवोमले । मतअंगमयो घटरंगभवो बिनकाज ब्याध बि चले। दो। काहूंनीके भले में प्रोटपाय करियेन । सुन श्रोहित उपदेशमें वानरहोमरियेन।। सो० । शाप पाय पछिताय पुनितासों बिनती करी । तन छिनबिरह बलाय सहबीहम केते दिवस ।। चौलानिमिषकठिनजबबिछुरतभोगी।कितकदिवसहमरहबबियोगी स्वामिनक्षमहु अपराधवखानो।मेरकृतकी गसानआनो। सो । जोपिय सों संयोग सुखिनबंध वेरनविषै। देय रिंचि बियोग कोटराज किहिकाजतिहि ।। मनमथके सुनबैन कह्यो बिरहिनी बालने। अरेधीरधर मैन तोहिं बिरहब्यापै सरल ।। जन्म आदि ते होय विरह बीज तेरेहिये । दिजतन पावे सोय बरसदोइ दशलौं रहै । विछुर जाय सोइ बाम चिनसौ बहुतकि विरह । दुसह बिरह सन नाय बाघवगीरवरषबसड्ड ।। पुनियह आप प्रताप मृगनयनी त्रियतोकोमिले। तेरह दिवस संयोग भोगकरहु तुमतासुघर ॥ तापर होय बियोग बरष दोइ दशमासजग ।