। विरहबारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। सो० ! उपदेशी द्विजबात ताकुमार तासोंकही। बचन एकविख्यात तासु अर्थकोउलहतनहिं । दो । कन्याने जननी जनी सुत उपजायो तात । वनिताने भर्ता जनो लोकबेद विख्यात ।। (लीलावति जानी) सो। ऐसे वचन अनेक लीलावति जानी सबै । विप न जान्यो एक जो लीलावतिने कह्यो। चौ०। पगनहीन दश दिशिहूंधावै । बिनाजी भके बेदपढ़ावै ।। मुख बिहीन जो अन्नखाय । जात न जानी कोधौंपाय॥ सबहिन की नारिनसोरहै । कुचमरदै अरु माताकहै ।। वेदकलाम पढ़त है दोऊ । वाविन तुरक न हिन्दूहोऊ ॥ (विपनजान्यो) छदभुजंगप्रयात। रहयो चाहते तातनय ओर ऐसी। फँसो वेनचाहे अहेरीहै जैसी॥ रहयो के फँसो खांड़यो है फुमानी। तरी है तिन्हें संतकैधौं भवानी ॥ हँसे तालदेदै सबै नग्रवासी। अहे विप्र जीतीकैधों नाहिंकासी॥ हती चौदही लोक में दृष्टि जाकी। भई बुद्धियो छिप्रही भ्रष्टताकी। दो । जंघजोर मडवा तर भांवरसात भ्रमाइ । अपकीरतिकन्या दई द्विजकोव्याहुबनाइ । छंदपद्धरिका । उपहास भयेपर जरयोवित्र । तिहि शाप दीन्ह बनिताहि विप्र ॥ जसहन्यो मोर अभिमानवाल । तसई दीन शाप यह बाल ॥ जेरचे ग्रन्थ तुम अति प्रवीन । तेहोय सबै दारिद्रलीन ॥ जोपढ़े पुरुषतो बढ़ेरोग। बनिताहि होयबालम वियोग॥ इहसबबवत्यो बनिताहि दुःख। चिपहि विरोधको लयो सुःख ॥ हारहुजीत करिये न टेक । द्विजकोह मिटै भूपतिअनेक ।। चौ० । शाप सबै बनितापर बीती। चरणशरण शंकरकोचीती। विधवाबाल सर्वसुख त्यागिन । नवयौवन प्रवीन बैरागिन ॥ निशिदिन करे शंभुकी सेवा। निगमागम जानत सब मेवा ॥
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