विरहवारीशमाघधानलकामकंदलाचरित्रभाषा । और देहुँ का तोहि मेरो शिरतुव बैठका ॥ है नकल पहिचान निज जियकी खोलें नहीं। कछु निशानी देहु तू अपने जियकी निशा। सोमाधोलखि लेहु मोंसोहोय भमीत तबाट चौ० चिट्ठीलिखन लगी सुकुमारी । थिरचित नहिं विर हा की जारी ॥ अहो मति माधव नलमेरे । वाफिक तो कह विरह दफेरे ॥ इश्कनशातू मों कहँदीन्हा । अजबकै कमेरोहियकीन्हा॥ निशि दिनचंग चढ़यो चितमेरो । रहत निहारत मारग तेरो ॥ सुखदै इश्क बिसाहाखोटा । चोटेजीव दैनका टोटा ॥ इश्क करै तो ऐसीचाही। एकै ख्यालपरै दिनजाही॥ दो कहिबो सबको सहलहै कहा कहेमें जात । कहिबो और निवाहियो बड़ी कठिन येवात ॥ सवैया । वादिनकी वह बान सधासन्दान पै बोधा महाधि- पसी भई । बातें कहींवग ध्यान सबैपर मीन सी बावरी बुद्धिफि लई ॥ होतो दिवानी भई सो भई उनसों न करी जड़ता वज के दई। यारी नहीं पै कुयारी करी दगारे दगादार दगासी दई॥ काहसोंका कहिवो अबहै यह बात अनैसी कहेते कहावत । को ऊकहा कहिहै सुनिहै कही काहूकी कौन मनै नहिं भावत ॥ बोधा कहे को परेखो कहा दुनिया सब मांस की जीभचलावत। जाहि जो जाके हितूने दई वह छोड़े बनै नहिं श्रोढ़ने आवत कबहूं मिलिहौ कवहूं मिलिहो यह धीरजरी में धरावो करे। उर ते कढ़ि अवै गरेते फिरै मनकी मनही में सिरावो करें। कवि- बोधा न चाटिसरै कबहूं नितहूं हरिवासों हिरावो करै । मुँहते ही बने कहते न बने तनमें यहपीर पिरावो करै ।। सो चिन्तामेरे चित्त माधव तेरे दरशकी। फुलवारीतकमित्त बनैतो मोहित आउने । दो. वधकुरंग को बहिलिया लावतशीश चढ़ाय। मेरीसुधि लीन्हीं न तू हिये नैन शस्लाय ।।
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