पृष्ठ:बिरहवारीश माधवानलकामकंदला.djvu/६१

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विरहबारीशमाधवानलकामकंदलाचरित्रभाषा। नतजौं।कसिकैससिकै रिसचित्तधेरै। ननकारविकारन वोरकरै ।। जवहींपियकी बाँहपियनाथगहै। तवहीं तियवासोंछोड़कहै।।पग केछुवतै अकुलातखरी । मुखसे निकसै सखी हायमरी ॥ करछूट- तवाल उठायचले । तबमाधव पीनउरोजमले ।। पुरलोगन को डबालहिये । बिगरैसोरंचकशोर किये ॥ पियसों विनवै जिन बांगहो । तज औरसबै हठसोयरहो। हँसिये खेलिये कहिये बतियां । रतिनाथ न हाथधगै छतियां ॥ मदनज्वर माधवाबूड़ रह्यो । भयको तजिके निःशंक गह्यो। अति कोपित कंथभयो तवहीं । थहरानलगी बनिता तबहीं ॥ पटुचापिरही कसिजंघदु- वो। पियसों विनवै जिनअंकछुवो ॥ बलकै करसोंकुचचापिर- ही। पियतो घंघराकी फूंदगही ।। झकझोरतछोड़त जोरकिये। लपटी भयलाज न बालहिये ॥ करिमेथिर पारदजोरखिये। नव- ढातियको रसज्यों चखिये ॥ध्रुघुरूरवघायलसेबिहरै। जनिश्रोणि तस्वेदप्रबाहढरै ॥ कुचशूरभले रणमाहलरें। दोउजंघ सुजानहु- तैनटरै ॥ विथो मुतियाइमिसो न धरै । त्रिदशांजन फूलन वृष्टि करै॥अतित्रासभयो तियकेहियमें। तबमाधवजान गयोहियमें। दो. रतिमें रातिपतिसौकरत कारनबेपरवान। पैमुरनाहींकी कहन माधवसकत जवान ॥ स० केलिकरी सिगरी रजनी पहफाटत दोनोंउठे अकुलातुहैं। कैकडंनींदउनींदे खुले जगकी भयतेनहिं धीरधरातुहैं । बोधार- हे चकचौंध दुवो उठिबेको दोनों हियेसकुचातु हैं । ऐसेथके छविकेरसमें लपटाय गरेसों दुवोगिरजातु हैं। दो० केलिकरी सिगरी निशा निशानमानी चित्त । साहसकै माधोचल्यो मोहिंविदादे मित्त ।। चौ. सिगरी रेनकेलि तिन कीन्हीं। भोर टेरतमचुर ने दीन्हीं॥ चाहत उठो उठो नहिं जाई । रहेडवो तिय सों लपटाई ॥ हिय सों छूट सकत हिय नाहीं । गरेलगे दोनों गिरजाहीं॥ भोर भये जगकी भय होई। विठुरन क्योंसकिये दुखहोई