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पृष्ठ:बिल्लेसुर बकरिहा.djvu/१४

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ललई का पान-पानी बन्द किया। ललई ने सोचा, एक ख़र्च बचा। गाँववाले भी समझे, इसने बेवकूफ़ बनाया, माल ले आया है जिसका कुछ भी ख़र्च न कराया गया। ललई निर्विकार चित्त से अपने रास्ते आते जाते रहे। मौक़े की ताक में थे। इसी समय आन्दोलन चला। ललई देश के उद्धार में लगे। बड़ा लड़का गुजरात में कहीं नौकर था, ख़र्चा भेजता रहा। गाँववाले प्रभाव में आ गये। ललई की लाली के आगे उनका असहयोग न टिका। अब मिलने की बातें कर रहे हैं ललई राजनीतिक सुधारक सामाजिक आदमी हैं।

बिल्लेसुर का हाल आगे लिखा जायगा। इनमें बिल और ईश्वर दोनों के भाव साथ साथ रहे।

दुलारे आर्यसमाजी थे। वस्तीदीन सुकुल पचास साल की उम्र में एक बेवा ले आये थे। लाने के साल ही भर में उनकी मृत्यु हो गई। दुलारे ने उस बेवा को समझाया, पति के रहते भी तीन साल या तीन महीने खबर न लेने पर पत्नी को दूसरा पति चुनने का अधिकार है। फिर जब वस्तीदीन नहीं रहे तब तीसरे पति के निर्वाचन की उन्हें पूरी स्वतन्त्रता है, और दुलारे उनकी सब तरह सेवा करने को तैयार हैं। स्त्री को एक अवलम्ब चाहिये। वह राज़ी हो गई। लेकिन दुलारे भी साल भर के अन्दर संसार छोड़कर परलोक सिधार गये। पत्नी को हमल रह गया था, बच्चा हुआ। अब वह नारद की तरह ललई के दरवाज़े बैठा खेला करता है। माँ नहीं रही।


(२)

मन्नी मार्ग दिखा गये थे, बिल्लेसुर पीछे-पीछे चले। गाँव में