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पृष्ठ:बिल्लेसुर बकरिहा.djvu/४७

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मंगली निकली तो बेमौत मरना होगा? ब्याह करना है तो आँखें खोलकर करना चाहिये।"

त्रिलोचन मन से बहुत नाराज़ हुए। बोले, "ऐसी बातें करते हो जैसे बाला के हो। तुम्हारे यहाँ वे नहीं आए और कभी कोई भलामानस न आयेगा। हम कहते थे कि भद्रा के जैसे मारे इधर उधर घूमते हो, तुम्हारा घर बस जाय, लेकिन तुम आ गये अपनी अस्लियत पर। मान लो, तुम्हीं मङ्गली निकले, तो? कौन बाप अपनी लड़की तुम्हें सौंप देगा? रही बात नातेदारी वाली, सो हम तो इसे सोलहो आने बेवकूफ़ी समझते हैं। बैठे-बैठाये पच्चीस रुपये का ख़र्च सिर पर। हम तो कहते हैं, चुपचाप चले चलो, विवाह कर लाओ। लड़की के बाप का नाम मालूम करना चाहते हो तो चले चलो, उनका घर भी देख आओ। लेकिन तुम्हारा जाना शोभित नहीं है, गाँव भर तुम दोनों को हँसेंगे।"

बिल्लेसुर को कुछ विश्वास हुआ। लेकिन रुपये की सोचकर कटे। लड़की के रूप का मोह भी घेरे था, सैकड़ों कलियाँ चटक रही थीं, खुशबू उड़ रही थी, पर त्रिलोचन पर पूरा-पूरा विश्वास न हो रहा था। पूछा, "यहाँ से कितनी दूर है?"

"तीन-चार कोस होगा।"

बिल्लेसुर ने सोचा, एक दिन में चले चलेंगे और लौट भी आयेंगे। बकरियों को बड़ी तकलीफ़ न होगी। पत्ते काटकर डाल जायेंगे। बोले, "तो चले चलो भय्या, देख लेना चाहिये, जिस दिन कहो तैयारी कर दी जाय।"

त्रिलोचन ने मतलब गाँठकर कहा, "अच्छा आज के चौथे दिन चलेंगे।"