सुर ने पूछा, "यहाँ श्यामपुर के त्रिलोचन आये हैं?" आदमी ने कहा, "हाँ, वहाँ रामनारायण के यहाँ बैठा है, ठग कहीं का। दोनों एक से, किसी का गला नाप रहे होंगे।"
बिल्लेसुर का कलेजा धक से हुआ। पूछा, "रामनारायण के लड़की-लड़के कुछ है?"
आदमी चौंककर बिल्लेसुर को देखने लगा, "तुम कहाँ रहते हो? तुम रामनागयण को नहीं जानते? उसके साले के लड़की लड़के! पूछो, ब्याह भी हुआ है?"
आदमी इतना कहकर आगे बढ़ा। बिल्लेसुर को बड़ी कायली हुई। वे उसी तरफ़ मन्नी की ससुराल को चले। मन्नी की सास से मिले। भली-बुरी सुख-दुख की बातें हुईं। बिल्लेसुर ने ढाढस बँधाया। कहा, ख़र्चा न हो तो आकर ले जाया करो। कहकर एक रुपया हाथ पर रख दिया। मन्नी अच्छी तरह हैं, कहा। उनकी लड़की की अच्छी सेवा होती है, मन्नी उसकी बड़ी देख-रेख रखते हैं। अब वह बहुत बड़ी हो गई है।
मन्नी की सास बहुत प्रसन्न हुईं। रुपया उठा लिया और पूछा, "घर बसा या नहीं। बिल्लेसुर ने जबाव दिया कि घर माँ-बाप के बसाये बसता है। मन्नी की सास ने कहा कि वे दस-पन्द्रह दिन में आयेंगी तब ब्याह की पक्की बातचीत करेंगी। बिल्लेसुर पैर छूकर विदा हुए।
(१३)
त्रिलोचन दूसरे दिन आये, और कहा, "बिल्लेसुर, तैयार हो जाओ।"
- बिल्लेसुर ने कहा, "मैं तो पहले से तैयार हो चुका हूँ।"
- त्रिलोचन ख़ुश होकर बोले, "तो अच्छी बात है, चलो।"