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पृष्ठ:बिल्लेसुर बकरिहा.djvu/६७

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की मन-गढ़न्तें फैलीं। किसी ने कहा, "सोने की ईंटें उठा लाया है, किसी से बतलाता नहीं, छिपा जोगी है, दो साल में देखो, गवाँ ख़रीदेगा।" किसी ने कहा, "महाराज के यहाँ से जवाहरात चुरा लाया है; लेकिन घर में नहीं रक्खे, बाहर कहीं घूरे में या पेड़ के तले गाड़ दिये है ताकि चोरों के हाथ न लगें।" ऐसी बातचीत जितनी बढ़ी, बिल्लेसुर के सामने लोगों की आँख उतनी ही झुकती गईं। दूसरे गाँव के लोग भी दरवाज़े से निकलते हुए बिल्लेसुर को पूछने लगे।

एक दिन नाई को बुलाकर बिल्लेसुर ने कहा, मन्नी की ससुराल गोवर्द्धनपुर जाओ और कह आओ, ब्याह बरात ले जाकर करेंगे। लड़की को मन्नी की सास बुला लें। उन्हीं के घर में खम गड़ेगा। बाक़ी यहाँ आकर समझ जायँ।

नाई कह आया। फिर नातेदारों के यहाँ न्यौता पहुँचाने चला––एक गाँठ हल्दी, एक सुपाड़ी और तेल-मयन-ब्याह के दिन ज़बानी। जितने मान्य थे, दोनों जगहों की बिदाई की सोचकर मडलाने लगे।

बिल्लेसुर के बड़प्पन की बात के पर बढ़ चुके थे। वे अवसर नहीं चूके। दूसरे गाँव में गाड़ी माँगी। व्यवहार रक्खे रहने के लिये मालिक ने गाड़ी दे दी। बिल्लेसुर चक्की से गोहुँ पिसा लाये। गाँव की निटल्ली बेवाओं से दाल दरा ली। मलखान तेली को कापुर से शकर ले आने के लिये कहा। बाक़ी कपड़ा और सामान गाँव के जुलाहे, काछी, तेली, तम्बोली, डोम और चमारों से तैयार करा लिया। घर के लिये चिन्ता थी कि बकरियों में नातेदारों की गुज़र न होगी, वह भी दूर हो गई; सामने रहनेवाली चौधरी की बेवा ने