पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/१८८

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बिहारी-रत्नाकर

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विहारी-राकरे डुनहाई सब टोल मैं रही जु सौति कहाई । सु हैं ऐच प्य अपु-त्य कर अदोखिल अहि ॥ ३४८ ॥ टुनहाई-टोना अर्थात् जादू करने वाली ।। टोल= मंडली ॥ अदोखिल=निर्दोष, दोष-रहित ॥ ( अवतरण )- इधर उधर की बातें सुन कर नायिका को नायक के सौत पर अनुरक़ होने का कुछ संदेह हुआ है, अतः सखी उस संदेह के दूर करने के निमित्त कहती है कि तेरे अाने के पहले तो अवश्य नायक का तेरी सौत के वश में होना टोल भर में प्रसिद्ध था, जिससे तेरी सौत को सब टुनहाई होने का दोष लगाती थीं । पर जब से तू आई है, तब से तो नायक तेरे रूप गुण से आकर्षित हो कर सौत की बात भी नहीं पूछता, अतः अब उस बेचारी के टुनहाई होने का दोष मिट गया:| ( अर्थ )-[तेरी ] सौत जो सब टोल में [ प्रियतम को अपने वश में कर रखने के कारण | दुनहाई कहला रही थी, सो [ उसको ] तूने आ कर, [ और ] प्रियतम को अपनी ओर खींच कर ( अनुरक्त कर के ) दोष-रहित कर दिया ॥ दृगनु लगत, बेधत हियहि बिकल करत अंग आन । ए तेरे सब हैं” बिषम ईछन-तीन बान ॥ ३४९ ॥ आन= अन्य, दूसरे ॥ ईछन ( ईक्षण ) = दृष्टि । ( अवतरण )नायिका की दृष्टि से घायल हो कर नायक विकल हो रहा है। नायिका से उसकी दशा निवेदित करने के निमित्त सखी यह दोहा, भूमिका-रूप से, पढ़ती हैं, जिसमें नायिका पूछे कि मेरे नेत्र ने किसको घायल किया है, और तब सब वृत्तांत कहने का अवसर प्राप्त हो, क्याँकि किसी के पूछने पर कोई बात कहने से उसका प्रभाव अधिक पड़ता है ( अर्थ )ये तेरे कटाक्ष-रूपी तीक्ष्ण बाण सबसे ( और सब बाणों से ) विषम (विलक्षण, तीव्र ) हैं । [ ये ] लगते तो इगों में हैं, [ पर ] बेधते हृदय को हैं, [ और ] विकल करते हैं। अन्य | सब ] अंगों को ॥ पीठि दिये हीं, नैंक मुरि, कर पूँघट-पटु टारि । भरि, गुलाल की मुठि सौं, गई मुठि सी मारि ॥ ३५० ॥ भरि= पूर्ण कर के अर्थात् अधभरी मूठ से नहीं, प्रत्युत मूठ को भली भाँति भर कर । भरि को अन्वय इस दोहे में कुछ कटिन है । इसमें मुख्य वाक्य ‘गई मूठि सी मारि' है । ‘गुलाल की मूठि सौं' वाक्यांश 'मारि गई' क्रिया का क्रिया-विशेषण है, और ‘भरि' भी उसी क्रिया का एक स्वतंत्र क्रिया-विशेषण है। इस दोहे के उत्तरार्ध का अन्वय इस प्रकार करना चाहिए-- गुलाल की मूठि सौ मूठि सी मारि गई भरि [ है ] ॥ बढि-तंत्रशास्त्र के अनुसार एक प्रयोग मूठ चलाना अथवा मूठ मारना कहलाता है । इसमें तिल, यव इत्यादि, मुट्ठी में भर कर एवं अभिमंत्रित कर के, जिस व्यक्ति पर प्रयोग करना होता है उसकी ओर, अथवा उसका नाम ले कर, फेंका जाता है । इससे मारण, मोहन इत्यादि प्रयोग होते हैं। जो प्रयोग करना होता १. हनिहाई ( १, २ ) । २. पिय ( २ ) । ३. तन ( २ )।