पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/१९५

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१५२
बिहारी-रत्नाकर


१५२ बिहारी-रत्नाकर ( मारवाड़ी ) दुपहर में (के समय ) [ संयोग से ] मरुधर ( मारवाड़) में [ कहीं ] मतीर ( बड़ा तबूज़ ) ही पा कर [ उसे ] पयोधि ( क्षीर-सागर ) कहते ( मानते ) हैं ॥ बिषम बृषादित की तृषा जिथे मतीरनु सोधि । अमित, अपार, अगाध-जलु मारी मुंड़ पयोधि ।। ३६७ ॥ ( अवतरण )--कवि की शक्ति है कि यदि किसी छोटी वस्तु से काम निकले और बड़ी वस्तु से काम न निकले, तो वह बड़ी वस्तु, चाहे कैसी ही उत्तम हो, व्यर्थ है | ( अर्थ )-वृषराशि के विषम ( प्रचंड ) सूर्य [ के ताप ] की प्यास से [ मरते हुए मारवाड़ी तो ] मतीरों को खोज खोज कर जिए, [फिर ] अमित (परिमाण-रहित ), अपार, [ तथा ] अगाध ( थाह-राहत ) जल वाले पयोधि (क्षीर-सागर) को [ ले कर ] मूड मारो ( वृथा मत्थापिट्टन करो ) ॥ मूड मारना लोकोक्ति है। ‘अमुक वस्तु को मूड़ मारो' का अर्थ अमुक वस्तु को वृथा समझो, कैंक दो, इत्यादि होता है । निपट लजीली नवल तिय बहकि वारुनी सेइ । त्यौं त्यौं अति मीठी लगति, ज्या ज्यौं ढीट्यौ देइ ॥ ३६८ ॥ ढोठ्यौ =ढिठाई का भाव ।। ( अबतरण )-नवादा नायिका को मदिरा पिला दी गई है, जिससे वह अपनापे से बाहर हो कर विठाई की बातें तथा चेष्टा करने लगी है । सखी नायक से उसका वृत्तांत कह कर उसे उसके पास लाया चाहती है | ( अर्थ )-[ वह ] निपट (अत्यंत) लजीली नवीन स्त्री [इस समय] वारुणी का सेवन कर के, बहक ( नशे से विवश हो ) कर ज्यों ज्यों ‘ढोठ्यौ देती ( ढिठाई प्रकट करती ) है, त्यों त्यों अति ( अधिक ) मीठी ( प्यारी ) लगती है। सरैस कुसुम मँडरातु अलि, न झुकि झपट लपटॉतु ।। दरसत अति सुकुमारु तनु, परसत मेन न पत्यातु ।। ३६९ ॥ ( अवतरण ):- अवतीर्णयौवना मुग्धा से मिलने के लिये उत्सुक नायक से सखी, उसकी रुचि बढ़ाने के निमित, कहती है कि आपको उससे मिलने में शीघ्रता न करनी चाहिए । देखिए, भ्रमर भी अत्यंत सुकुमार कुसुम से एकाएक झपट कर लिपट नहीं जाता, प्रत्युत उसका रस अलग ही से, मँडरा कर, लेता है ( अर्थ )[देखिए,] रसीले ( टटके ) कुसुम पर भौरा मँडराता रहता है, [पर ] कुक । १. मारों ( १ ), मा5 ( ३, ५ )। २. मूद ( ३, ५ ) । ३. सिरस (४) । ४. लपटाइ ( ३, ५ )। १. न्यौं (२) । ३. श्याइ ( ३, ५ )।