सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/२०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१५८
बिहारी-रत्नाकर


विहारीकर से अपने इष्ट का साधन कराना चाहती है ॥ ईडि-इस शब्द के विषय में २८-संख्यक दोहे की टीम द्रष्टव्य है ॥ सयानु = सयानपन, चातुर्य ।। ( अवतरण )-नायिका अन्यसंभाग-दुःखिता है। नायक की गुप्त प्रीति पडसिन से थी । एक दिन जब नायक घर पर नहीं था, तब उस पड़ोसिन ने आ कर, और नायिका की बड़ी इष्ट बन कर, उससे नायक से कहने को कुछ सँदेसे कहे । वे सँदेसे कुछ इस प्रकार के थे कि 'आज मेरे घर में कोई है नहीं, अतः तुम अपने पति से कह देना कि कृपा कर के मेरा अमुक कार्य कर दें', इत्यादि । इन सँदेस से नायिका ताड़ गई कि इससे और मेरे पति से प्रीति है, अतः यह अवसर पा कर उनको सूने घर में बुखाया चाहती है । जब नायक आया, तो नायिका ने वे सब सँ दसे, जो दीठ पड़ोसिन ने इष्ट बन कर बड़ी चातुरी से कहे थे, कह कर और मुसकिराहट-द्वारा यह व्यंजित कर के कि मैं सच भीतरी बात समझ गई हैं, अपना मान सूचित किया। सखी-वचन सखी से | ( अर्थ )–ढीठ पोसिन ने इष्ट हो ( बन ) कर जो [सँदेसे] सयानपन गहे ( धारण किए ) हुए [ नायक स कहने को नायिका से ] कहे थे, [ से ] सभी सँदेसे [ नायिका ने नायक से ] कह कर मुसकिराहट में ( मुसकिराहट-द्वारा ) [ अपना ] मान कहा ( प्रकट किया ) ॥ इस दोहे के अर्थ में टीकाकारों ने बड़ा धोखा खाया है ॥ छिनकु चलति, ठठुकति छिनकु, भुज प्रीतम-गल हारि। चढ़ी अटा देखति घटा विज्जु-छटा सी नारि ॥ ३८४ ॥ ठठुकति = ठमकती है । छटा = पुति की लपक ।। ( अवतरण )--नायिका, नायक के साथ अटारी पर घूम घूम कर, नए उठे हुए बाद का तमाशा देख रही है। सखी-वचन सम्वी से : ( अर्थ )--[ देखो, वह ] बिजली की छटा सी स्त्री अटारी पर चढ़ी हुई [ कैसे आनंद से ] घटा देख रहा है। प्रियतम के गले में बाँह डाल कर क्षण भर (कभी तो ) चलती (टहलती ) है, [ और ] क्षण भर ( कभी ) ठिठक जाती है ( ठहर जाती है ) ॥ धनि यह वैज; जहाँ लख्यौ, तज्यौ दृगनु दुख-दंदु । । तुम भागनु पूरब उयौ अहो ! अपूरबु चंदु ॥ ३८५ ॥ दुस-यंदु = दुःख का ताप ।। ( अवतरण )-कोई परकीया पूर्वानुरागिनी मायक को देस्ट विना संतप्त हो रही है। दिन गुड़ पक्ष की द्वितीया का है। उसकी अंतरंगिनी सन्नी चंद्रमा देखने के निमित्त अटारी पर चढ़ी, तो उसने गायक को अपनी अटा पर स्वया देखा । नायक का घर नायिका के घर से पूर्व दिशा में है। सनी नीचे आ कर नायिका से कहती है ( अर्थ )—यह ( आज की ) वैज धन्य है (अन्य वैजों की अपेक्षा श्लाघनीय है)। [ कारण, आज ] तुम्हारे भाग्य से अहो ! पूर्व में अपूर्व चंद्रमा उदय हुआ है[ तुरत इस