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बिहारी-रत्नाकर


२९४ बिहारी-रत्नाकर ( अवतरण )-कोई सजन कृष्ण-भक्त अपने प्रभु के वीरव का वर्णन करता है ( अर्थ )-[ सब ] प्रलय-करण ( प्रलय करने वाले ) जलधर (मेध ) [ इंद्र की आशा से ब्रज को बहा देने के निमित्त ] जुड़ कर ( इकड़े हो कर) एक साथ [ ही ] बरसने लगे। [ पर उनकी कुछ भी न चली ] गिरिधर ( श्रीकृष्णचंद्र ) ने हर्ष-पूर्वक [ गोवर्द्धन ] गिरि को हाथ पर धर कर [ और व्रजवासियों को उसके नीचे शरण दे कर ] सुरपति ( इंद्र) का गर्व ( यह अभियान कि मैं व्रज को बहा दूंगा ) हरा ( नष्ट कर दिया ) ॥ करे चाह स चुटकि कै खरै उहैं मैन । लाज नवाएँ तरफरत करत खुद सी नैन ॥ ५४२ ॥ चुटकि कै= चुटकारी दे कर । चुटकने के विषय में लाला भगवानदीनजी की टिप्पणी द्रष्टव्य है । अतः वह नाचे उद्धत की जाती है--सन की एक गावदुम लंबी रस्सी सी ( वेणी के आकार की ) बनाई जाती है। उसे चुटकी कहते हैं । घोड़ा निकालते समय जब घोड़े को 'उड़ान' सिखाना होता है, तब यह चुटकी घोड़े के पछि तड़ाक तड़ाक बजाई जाती है, जिससे डर कर घोड़ा उड़ना ( कूदते हुए चलना ) सीखता है। ख़ुद-इसे शब्द पर श्रीपंडित पद्मसिंहजी शर्मा की टिप्पणी उद्धत की जाती है-“लवु द्रत गति से जमीन को काटते हुए चलना, जहाँ से पैर उठाया है फिर वहीं रखना, इत्यादि खुद करने का अर्थ है, जिसे इधर की ग्रामीण भाषा में ‘खोर खोदना' भी कहते हैं। जब बछेरे को ‘ोघी' में फेरते वक़ चाबुकसवार उसके चाबुक या कोड़ा मारता है, तो वह ऊपर को उठ जाता है, और भागना चाहता है ; परंतु बार्गे सिँची रहने के कारण भाग नहीं सकता, झुक कर वहीं अा रहता है । | ( अवतरण )-मध्या नायिका के नेत्र चाह से तो ऊँचे हो कर नायक को देखना चाहते हैं, पर जजा से दब कर फिर नीचे हो जाते हैं। उनकी यह व्यवस्था कोई सच्ची उनकी उपमा खैद करते हुए घोड़ों से दे कर किसी अन्य सखी से कहती है | ( अर्थ )-चाह-रुपी चुटकी ] से चुटक कर मदन[-रुपी सवार] के द्वारा ‘ख’ ( भली भाँति ) उi ( उड़ान अर्थात् कुदान करने पर उद्यत ) किए हुए [ इसके ] नयन [-रुपी तुरंग] सजा-रूपी लगाम ] से 'नवारें' ( झुकाए जाने से ) [ एक ही स्थल पर ] तरफड़ाते हैं, मानो खैर कर रहे हैं। ज्यौं ज्याँ प्रावति निकट निसि, त्यौं त्यौं खरी उताल । झमक झमकि टहलें करै लगी रहच बाल ॥ ५४३ ।। उताल = चित्त मैं शीघ्रता रख कर ॥ रहच बरस की चाट अर्थात् लालच में ॥ । ( अवतरण )--प्रियतम से शीघ्र ही मिलने के बावच से नायिका घर के साथ काम काज जल्दी जल्दी कर के साँझ री से छुट्टी पा जाना चाहती है। सखी-वचन सखी से-- ( अर्थ )-[ देख, ] रस की चाट में लगी हुई [ यह ] बाला ज्यों ज्यों रात समीप १• चटके ( ३,५ ) । २. दवाएँ ( २ )।