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बिहारी-रत्नाकर


३० बिहारी-रत्नाकर 4 सोरठा मैं लाख नारी-ज्ञानु करि राख्यौ निरधारु यह । वहई रोग-निदानु, वहै' बैदु, ओषधि व ॥ ५५७ ।। नारी-मानु-यह पद यहां श्लिष्ट है । इसका पहिला अर्थ नाड़ी-ज्ञान अर्थात् नाड़ी-परीक्षा का ग्रंथ विशष श्रीर दूसरा अर्थ नारी-ज्ञान अर्थात् स्त्रियों के स्वभाव, ग्राकृति इत्यादि से उनके वृत्तांत का ज्ञान प्राप्त करने का शास्त्र है ॥ रोग-निदानु=रोग उत्पन्न होने का आदि कारण ।। ( अवतरण )- पूर्वानुरागिनी नायिका विरह से व्याकुब तथा रोगग्रस्त हो रही है, पर अपना अनुराग छिपाए है। सखियाँ अनेक सपाय करती हैं. पर कुछ लाभ नहीं होता । तब एक सखी, जो उसके रोग का कारण समझ गई है, उससे कहती है कि मैं तेरा रोग समझ गई हैं। तेरे रोग का जो अादि कारण है, वही इसका वैय और वहीं इसकी औषधि भी है। अब त घबरा मत, मैं इस रोग की निवृत्ति का उपाय करूंगी ( अर्थ )-मैंने नारी-ज्ञान (१. नाड़ी-शान । २. नारी ज्ञान ) देख कर (तेरी दशा का मिलान नारी-शान से कर के ) यह निश्चय कर रखा है [ कि तेरे ] रोग का वही [ तो ] आदि कारण है, वही वैद्य है, [ और ] वही औषधि है [ अर्थात् तेरे रोग का कारण किसी पर अनुरक्त होना है, और बस वही तेरा चिकित्सक तथा औषधि है ] ॥ नायिका बहिरंगिनी सखियाँ तथा गुरुजन मैं वठी है । इसलिए इस सखी ने श्लेष से यह बात जो तिय तुमै मर्नभावती राखी हियँ बसोइ । मोहिँ झुकावति दृगनु है वहई उझकति अाइ ॥ ५५८॥ ( अवतरण )–नायक नायिका को किसी अन्य स्त्री के नाम से पुकार बैठा है । उस पर नायिका रुष्ट हो कर कहती है कि जिस स्त्री को तुमने अपने हृदय में बसा रक्खा है, वही मुझको चिढ़ाने के लिए तुम्हारी आँखों मैं उझक उझक कर अाती है, अतः उस का रूप तुमको दिखलाई देता है, और तुम मुझको इसी के नाम से पुकारते हो--- | ( अर्थ )-जो मनभावती स्त्री तुमने | अपने ] हृदय में बसा रखी है, वही मुझ को खिझाती हुई [ तुम्हारी ] आँखों के द्वारा आ आ कर उझकती है [ जिससे तुम्हें मुझमें भी उसी का रूप दिखाई देता है, और तुम उसी के नाम से मुझको पुकारते हो ] ॥ जिसके मन में जो बहुत बसा रहता है, उसका नाम उसके मुंह से, अन्य किसी से बातचीत करते समय अथवा अन्य किसी को संबोधित करते समय, अनायास ही निकल जाता है । नायर के मुंह से अन्य सी का नाम निकल जाने पर नायिका के मन करने का वर्णन अनेक कवियाँ ने किया है। बिहारी ने अपने ५६९:संख्यक दोहे में भी यह भाव कहा है॥ १. उहे ( ३, ५) । २. श्रौषदि ( २ ), औषद ( ३, ५ ) । ३. तुव ( ४ ) | ४. जिय ( ३, ५) । ५. लगाव ( २ )। ६. उहई ( ३, ५ ) ।