सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/२८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२४३
बिहारी-रत्नाकर

________________

बिहारी-रत्नाकर | ( अर्थ )-[ यह ] विरह की पीड़ा के बढ़ने पर मरने का साहस ( हिम्मत ) कर कर के शाश, कमल [ तथा ] सुगंधित वायु से (के) सन्मुख हुई ( हो कर ) दौड़ती फिरती है ॥ शशि इत्यादि विरहिणी के ताप देते हैं । अतः नायिका समझती है कि इनके सामने अधिक होने से, तोपाधिक्य के कारण, प्राण निकल जायेंगे, और मैं विरह-व्यथा से छुट्टी पर जाऊँगी ॥ कब की ध्यान-लगी लखौं, यह घरु लेगिहै काहि ।। डरियतु भुंगी-कीट लैं मंति वहई है जाइ ॥ ५८६ ॥ भृगी= एक पंख वाला कीड़ा, जो अन्य छोटे छोटे कीड़ों को पकड़ कर अपनी वल्मीक में रखता ग्रेरि उनके चारों ओर चूम चूम कर इतना भनभनाता है कि उसके भय से 1 छोटे कीड़े उग्र के ध्यान में तल्लीन हो कर उसी का रूप धारण कर श्रृंगी ही हो जाते हैं । इसका वर्णन योग और साहित्य में बहुत अाया है ।। ( अवतरण )-पूर्वानुरागिनी नायिका, घर बार तथा खाने पीने की सुधि भूली हुई, बड़ी देर से नायक के ध्यान में लगी हुई है। उसकी हितकारिणी सखी उसे समझा कर आपे में लाया चाहती ; । सखी का अभिप्राय यह है कि यह खाए पिए और घर के काम काज देखे, जिसमें इसका अनुराग खुलने न पावे, और हम लोग इसको नायक से मिलाने का यथोचित उपाय करें ( अर्थ )-[ मैं तुझको ] कव की ( बड़ी देर से ) [ नायक के ] ध्यान में लगी हुई देखती हूँ, [ जिससे यह ] डर होता है [ कि ] कहाँ [ तू ] भुंगी-कीट ( भुंगी के द्वारा पकड़े गए कीड़े) की भाँति वही ( जिसके ध्यान में लगी हुई है ) न हो जाय। [ देसी अवस्था में तू बतला तो सही कि ] यह [ तेरा ] घर बार किसको लगेगा ( किसके सहारे चलेगा, क्योंकि तू तो तू रहे ही गी नहीं। अतः तुझका उचित है कि अपने को सँभाले) ॥ बिलखी लखै खरी खरी भरी अनख, बैरग । मृगनैनी सैन न भनै लखि बेनी के दाग ।। ५८७ ॥ सन—यह शब्द संज्ञा से बना है। इसका अर्थ इंगित अर्थात् इशारा है । यह विशेषतः अाँखा के इशारे के अर्थ में प्रयुक्त होता है । लक्षभा शक्ति से इसका अर्थ ग्राख अथवा पलक भी होता है । बोलचाल में भी लोग कहते हैं कि वह सैन नहीं भांजता', अर्थात् पलक नहीं गिराता ॥ | ( अवतरण )--मुग्धा खंडिता नायिका का वृत्तांत सखी सखी से कहती है ( अर्थ )-[ प्रियतम के अंग में अन्य स्त्री की ] वेणी के चिह्न [ उपदे हुए ] देख कर [ यह ] मृगनयनी सैन ( पलक ) नहीं भजती ( गिराती ), [ और ] ‘अनख' ( अमर्ष ) [ तथा ] 'बैराग' (उदासीनता ) से भरी [एक ही स्थल पर पुत सी सी ] खड़ी खड़ी ‘बिलखी' (दुखी ) हुई [एकटक ] देख रही है । १. लखे ( ३, ५ ) । २. लागाह ( ५ ) । ३. जिन ( ४ ) ।