पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/३७३

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विज्ञप्ति इस उपस्करण में वे दोहे एकत्र कर दिए गए हैं, जो विहारी-रत्नाकर में तो नहीं स्वीकृत किए गए हैं, पर बिहारी-सतसई की भिन्न भिन्न मूल अथवा सटीक प्रतियों में मिलते हैं। इनमें से कुछ दोहे तो प्रत्यक्ष ही मतिराम, रसलीन इत्यादि कवियों के हैं, और शेष में से पाँच-सात को छोड़ कर अन्य की न तो भाग बिहारी की परिमार्जित भाषा से मिलत है, और न रचना-प्रणाली उनकी सुगठित रचना-प्रणाली से ॥ | इन दोहों की पाठ-शुद्धि में विशेष श्रम नहीं किया गया है । दो-एक पुस्तकें के आधार पर उनके पाठ रखे गए हैं। किसी किसी के पाठांतर भी पाद-टिप्पणी में दे दिए