पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/३८५

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५० चुरौ न । विहार-रत्नाकर नथुनी गज १३८ । बिधि हैं। नहिँ टीको विधुश्दन। मेस कहत । लट भयो । । कत | ४८ १२२ ललकि लोल निकट पाट विधुवनी मोसों कहत,मैं ८ लाख भाँति निमि बोलौ विनु वरजं लाज घोरि नेहु निकाह लाइन लोहू नैन किरकिरी | बूढ़ परी [ व ] १२८ नैन-तुरंगम वेद भेद वाको मनु नैन परे ४६ नैन, स्रवन ब्रज-बासिनि [ स ] [भ] सकुच-सहित सखियनि मैं ६८ परी परी जी बुरी । सखी सिखावति ११९ पलकनि ने नीर सधन कुंज १२४ पाएँ [ म ! सतसैया के ६५ पावस कठिन मन-मरवट सपत वड़े। ६४ पिय क्री १३४ मनमोहन सरवर की यो विद्युत ४४ साहस करि १३३ मनु माय प्राल-पियारी मनु मिलचति ६५ सिव, सनकादिक । प्रीतम का मान छुटेगी सिसुता । १४३ प्रेमु दुरायौ मानति मोसा सुरत-अंत | [फ ] १०४ सूक्यौ बारिज मानु दुरावति फूल नि है। १०८ मारे काहू सूखि मिरच। ३४ [ ब ] मुंदन, खुलत | [ ह ] য-স্মথ। ११६ हँसि हँसि । ११८ यलया, पीक में समुझाई हनी पूतना ८१ दामन ल मोसों मति हरि को कियौ न । बारनि की । मोही सां। होति कहा चार बार हौं आई , बास्यो विरह ६८ रह्यो न बालम, तुम सा । . ५५ 5 १३ ४३ ७६ १२०