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पृष्ठ:बिहारी-रत्नाकर.djvu/९७

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बिहारी-रत्नाकर

५४ बिहारी-रक्षाकर नतहक = नहीं तो, अन्यथा ॥ ( अवतरण )-पूर्वानुराग में नायिका अथवा नायक का वचन सखी से- ( अर्थ )-सभी कवि [ इनको] कमल के समान कहते हैं, [ पर ] मेरे मत से नयन पाषाण हैं , नहीं तो इनमें दूसरे [ नयनों ] के लगने से (१. मिलने से।२. टक्कर खाने से) विरह की अग्नि क्यों उत्पन्न होती है । हरि हरि : बरि बरि उति है, करि करि थकी उपाइ । बकौ , बलि के३ जौ तो रस जाइ) जाइ ॥ ११९ ॥ हरि हरि! -हरि हरि, शिव शिव इत्यादि पद किसी बात के खेदपूर्वक कहने में प्रयुक्त होते हैं। गुरु = ज्वर ॥ बैद—वैय का मुख्यार्थ पंडित, सुजान है । सामान्यतः इसका प्रयोग चिकित्सक के अर्थ में होता है । इस दोहे में इसके दोनों ही श्रथा” का प्रहण है । रस —यह शब्द यहाँ श्लिष्ट है । नायकपक्ष में इसका अर्थ प्यार अथवा मिलनसुख है, श्रौर वैद्य-पक्ष में मृत्युंजयादि रस ॥ ( अवतरण ) -सखी नायक से नायिका का विरह निवेदन करती । है ( अर्थ ) हर हरि ( हाय हाय ) : [ वह क्षण क्षण पर] बल बल उठती है, [ में तो] उपाय कर कर के थक गई [ पर कुछ लाभ नहीं होता ] ! है वैद्यजी, में आपकी बलि गई [ अब तो कोई और उपाय चलता दिखाई नहीं देता, हाँ ] यदि तुम्हारे रस से उसका ज्वर ( विरहताप ) जाय तो जाय ॥ यह विनसतु नए रात्रि के जगत बड़ौ जर्स्ट लेड । जरी बिषम जुर जइटें आई ठंदरसनु देह ॥ १२० ॥ न =रलस्त्री-रत्न ॥ दरसन ( सुदर्शन ) (१ ) सुंदर दर्शन I(२ ) एक प्रकार का चूर्ण विशेषजो विषम ज्वर में दिया जाता है । ( अवतरण )—विरहिणी नायिका की दशा सखी नायक से पत्रद्वारा निवेदित करती है ( अर्थ ) इस नाश होते हुए स्त्री-रल को रख कर ( नष्ट होने से बच कर ) जगत् में बड़ा यश प्राप्त करो । इस विषम ज्षर से जली जाती हुई को आ कर सुदर्शन दो ॥ e या अनुरागी चित्त की गति समु नदि कोइ। ज्य ज्य बूड़े स्याम रंग, त्य त्यौं उज्ज़लु होइ ॥ १२१ ॥ अनुरागी=प्रेमो, अनुराग-युक्त । अनुराग का रंग कविसमय के अनुसार लाल माना जाता है, अतः 'अनुरागी' का अर्थ लाल रंग वाला भी होता है ॥ गति = चाल । यहाँ इसका अर्थ रीति, व्यवस्था है। । १. कहि ( २ ), आति ( ५ )। २. ज्वर ( ४ ) । ३. लौं (२ ), लों (४ 3, ज्य ( ५ ) । ४. तो ( २, ४, ५ )। ५. इह ( ५ ) । ६. सुख ( ५ ) । ७. ज्या:ों ( १ ), जाइयों (२ ), ज्याइए (४.), जाइये (५ )। ८. सुदर्शन ( ५ )। ह• बूडतु ( १ ), भीलै (४) ।