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बिहारी बिहार ।

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बिहारीबिंहारः । अनहदधुनिलाजंति ॥ घरै घालि घुघुरू धरहाइन को पूँटत जिय ॥ छन छनः। • छननं,कै कै सुकवि न कहा ग़ज़ब किय॥६०१॥ :: :: :: :: :: सोहत अंगुठा पाँय के अनबँट जटित, जराइ। । | जीत्यौतरिवानिदुति सुढेरि पस्यो तरानमनु आई ॥११॥ । परयो तरनि मनु पाइ। कूरकरनिकरन त्यागी । चकाचौंध की चमक क्वॉड़ि लघु भयो विरागी ॥परि नखससि के सङ्के अधिक मोहनमन मोहत।सुकविः । । रतन स जड्योः पाँय अनवटः अति सोहंत ॥ ६०२॥:::::::

  • अरुनबरन तरुनीचरन अँगुरी अति सुकुमार। में चुअतिः सुराँसँगसँग सी मनहुँ चीप बिछिंयन के भार॥१२॥ * चॅपि विछियनः के भार आँगुरीरंग चुवतःचलिबेः जनु अंम पाय चरन * सोनितनबहावत:॥ फूल चुनन सौं लाल भयेवातिय के दोऊ कर्।सुकबि * बचन स थके अधर हू भये अरुन वरः॥ ६०३:॥ : : :: - पग पग मग अगमनः परति चुरन अरुन दुति झलि।।

ठौर ठौर लखियतः उठे दुपहरिया से फूलः॥१३॥ * : दुपहरिया से फूलठौर ही ठौर,लखाहीं । चै चलिहै जनु सोनित यों ज़िय । से अधिक सकाहीं ॥ यह कोमलता लखत होत सखियन हिय दगदग । सुकबि * हाय मग अगम बाल चलि है क्याँ पुगपंग ॥ ६०४ ॥ ............... । : पग भूषन अंजन दृगनि पगन महाउर रंग। नननन महार... - - ..... नहिं सोभा क साज़ियत कहिवे ही का अंग ॥५१४॥ . काहवे हीं : अङ्ग अङ्ग धारतियह प्यारी। सहज सलोनी सोभाक इन

  • अनहद धुनि = अनाहत धनि । ' यह दोहा अनवरचंन्द्रिका में नहीं हैं।

कर ६ । • •

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