पृष्ठ:बीजक.djvu/१०५

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(५४) बीजक कबीरदास । साखी ॥ बँदिमनायफलपावहीं, बंदिदियासोदेव ॥ | कहकवीरतऊबरे, निशिदिननामहिंलेव ॥ ६ ॥ | बंदि कहे विद्या अविद्यारूप जो बेरी ताको जे मनावै हैं ते तनै फलपावै हैं अर्थात् जे स्वर्गादिक की चाह करैहैं ते लोहेकी बेरीमें परे । जे अहंब्रह्मास्मि मानेते सोने की बेरीमें परे । सो जोने इष्टदेवतनको मनाये सोबन्दीही फल देतभये अथवा ते फल देवते दिया। जिन उपासना कियाहै बन्दिमें नाय कहे बन्दिमें डारिदये हैं तेई फल पावै हैं । अर्थात् स्वर्गादिक जे फलहै तेसब बंदिमें डारनवारे हैं । सो बंदि डारनवारो ने फलदेय हैं तेकादेव हैं ? नहीं हैं सो कबीरजी कहै हैं कि जे श्रीरामचंद्र को नाम निशिदिन लेयहैं तेई बरै हैं ॥ ॥ इति नवीं रमैनी समाप्तम् ।। अथदशवीं रमैनी। चौपाई। राही लै पिपराही बही । करगी आबत काहु न कही ।। १ ।। आई करगी भो अजगूताजन्म जन्म यम पहिरे बूता ॥२॥ बुतापहिरयमकरै पयानातीनलोकमें कीन समाना ॥३॥ बांधे ब्रह्मा विष्णु महेशू । पार्वती सुत वध गणेशू ॥४॥ बँधेपवन पावक नभनीरू चन्द्र सूर्य्य बांधे दोउ वीरू ॥५॥ साँचमन्त्र बांधेसवझारी । अमृत बस्तु न जानै नारी ॥६॥ साखी ॥ अमृत बस्तु जानै नहीं, मगन भये कित लोग। कहहिं कबिर कामोनहीं, जीवह मरण न योग॥॥॥ राही लैपिपराहीबही । करगीआवतकाहुनकही ॥१॥ राहीकहे सुराहके चलनवाले औ पिपराही कहेपीपरकी बनिका की नाई अनेक मति में डोलनवाले जे जीव ते राही जे हैं तिनहूं को लैकै संसारसागर में