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( ७६ ) बीजक कबीरदास । मानुष बड़े वड़े द्वै आये । एकै पण्डित सवै पढ़ाये ॥६॥ कसाई ने गुरुवालोग तिनकी बनाई पोथै सोई छूरीहाथमें लीन्हे यह । ताके हैं कि कैसेहुकै कौन्यो मतको आवै तौ ठगिकै अपनेमतमें कैॐई माथ काटिलै कहेमूड़िडारै चेलाकारलेयँ । सो साहब को छोड़ाइ औरे आरम लगाबनवारो हैं। सो गुरू कसाई है । यही चैत ज्ञानवाले गुरुवालोग जीवनको गलाकाटें हैं जो संसारमें रहते तो कबहूँ दैवयोगते साधु सङ्गभयो उद्धारहू होतो सो तौने धोखा ब्रह्ममें लगायदियो जहांते उद्धार नहीं है वहां काहेको कोई साहबको बतायेंगे ॥ ५ ॥ मनुष्य ने बड़े ज्ञानीलोग हैं ते यही पढ़ावतभये कि एक वही ब्रह्महै जीवनहीं है और कोई या पढ़ाया कि एक नावही सच है और सब असांचहै ॥ ६ ॥ पढ़नापढ़हुधरहुजनिगोई नाडेतौनिश्चय जाउबिगोई॥७॥ जौनपढ़ना तुम गुरुवालोगनतेपढ्या है सोअबजनिगोइराखो औ जो गोइराखोगे तौ कुमतिहीमें परेरहोगे जो गोइ न राखोगे तो संतळोग समुझायकै भ्रम काटिडारेंगे कैसे कि जो एकब्रह्म होता तैौ भ्रम कौनको होतो है जो एक जीवही साहब होतो ती बँधिकैसे जातो सोमायात बांधनवाली है औजीवबंधनवारॊहै औ साहब छुड़ावनवाळहै यह बिचारि साहबको जानो साहब छुड़ायलेईंगे नहीं निश्चय बिगोइ जाहुगे अर्थात् कुमतिमें लागि कै बिगरिजाहुगे ॥ ७ ॥ साखी॥सुमिरनकरहुसुरामको, औछांड़हुदुखकीआस ॥ तरऊपरधारचापि, जसकोल्हूकोटिपचास ॥ ८॥ सो परमपुरुष जे श्रीरामचन्द्रहैं तिनको सुमिरनकरी धोखी ब्रह्म औमाया इनकी दुःखरूप जो आश सो छांड़ो जो न छोड़ोगे तै तरे तो मायारूप कोल्हू ऊपर ब्रह्मरूपजाठमें तुमको पेरिडारैगो पचासकोटिकोल्हूकह्या सोअगणितब्रह्मांडहैं तामेंडारिकै ॥ ८ ॥ इतिसत्रहवीं में समाप्तम् ।।