पृष्ठ:बीजक.djvu/१६५

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रमैनी ।

रमैनी । (११८९) अथ चालीसवीं रमैनी। चौपाई। आम आदि सुद्धि नहिंपावामामाहौवा कहूँ ते आवा॥ १॥ तवहोते न तुरुक औ हिन्दूमायके रुधिर पिताकेविन्दू॥२॥ तवनहिहोते गाय कसाई।कहुविसमिल्लहकिनफ़रमाई॥३॥ तवनारह्योहै कुलऔजाती।दोजकभिस्तकहां उतपाती॥४॥ मनमसलेकीखवरि नजाने।मतिभुलानदुइदीनबखानै॥॥ साखी ॥ संयोगे का गुनरवै, विनयोगे गुणजाय॥ जिह्वास्वादकेकारणे, कीन्हे वहुत उपाय॥६॥ आदमआदिमुद्धिनहिंपावा । मामाहौवाकते आवा ॥१॥ तबहोते न तुरुक औ हिंदू । मायकेरुधिरपिताकेविंदू ॥२॥ | आदि आदम जे ब्रह्मा ते मामाकहे जगतपिता हौवा नामऐसी जो वाणी ब्रह्माकी नारी सों ब्रह्मही सुधि ना पाया कि कहां ते आई है ॥ १ ॥ तब आदिमें न हिंदुग्हे न तुरुकरहे औ मायके रुधिरते पिताके बिंदुते गर्भ होइहै सोऊ नहीं रह्यो ॥ २ ॥ तबनहिंहोतेगायकसाई । कडुबिसमिल्लहकिनफ़रमाई ॥३॥ तवनरह्योकुल औजाती । दोजकभिस्तकहांउतपाती॥४॥ मनमसलेकीखवरिनजानैमतिभुलानदुइदीनबखानै ॥६॥ | तब न गाइ रही न कसाई रहे सो जो बिसमिल्ला कहिंकैहलाल करै है। सो किन फुरमईहै ॥ ३ ॥ अरु तब न कुलरह्यो औ न जाति रही दोजक भिस्त कहांरखें है ॥ ४ ॥ मनके मसलेकी सुधि न जान्यो कि ई मेरेमनैके बनाये हैं दोनोंदीन । औ अपने आत्माको मत न जान्यो कि यह न हिंदू हैं न मुसलमान है मतिहीन दुइदीन बखानत भये ॥ ५ ॥