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रमैनौं। अथ छयासठवीं रमना । चौपाई ।। | सोई हितू बंधु मोहिं भवै ।जात कुमारग मारग लावै ॥१॥ सो सयान मारग रहिजाई करै खोज कबहूँ न भुलाई॥२॥ सो झूठा जो सुतकै तजई।गुरुकी दया रामको भजई॥ ३॥ किंचितहैयहिजगतभुलानाधिनसुतदेखिभयाअभिमाना ४ साखी । जिय जो नेक पयान किये,मंदिर भया उजार ॥ मरे जे जियते मरिगये, बाँचे वाचन हार ॥ ॥६॥ सोई हितु वा बंधु मोको भावैहै जो कुमारगमें जात जे जीव हैं तिनको सुमारगमें लैअवै कह साहबका बतावै अथवा कुमार्ग में जात जो जीवहैं ताकेा साहबके सुमार्गमें लगव॥ १॥ अरुसे ई जीव सयानहै जो सुमार्गमें आयकै रहिनाय हैं। कहे स्थिर द्वैजाय है अरु और और मतनको खोज कारकै सबको सिद्धांत साहब हीमें लगाइदेइ सो कवहुं न भुलाइ है ॥ ३ ॥ ऐसो गुरुवा झूठा है जो सुतेकै कहैं, मुड़ मूड़िकै अपना चेला बनाइके ताजिदेइ है साहब को नहीं बतावै है. औरे औरे देवतनको सौंपिंदेइ है औ जाकीदद्या ते अर्थात् जाके उपदेशते यह जीव श्रीरामचन्द्र को भजन करै हैं सोई सांचो गुरु है। भाव यह है कि बिना परमपुरुष श्रीरामचन्द्रजी के जाने यह जीव को शोक नहीं छूटै है जे गुरु साह बको बताइकै संसारते नहीं छुड़ावै हैं औरे अरे मतन में लगाईंकै संसारमेंडारिदेइहैं ते अज्ञान दूर करनवारे नहीं हैं वे नरक देन वारे हैं औ आप नरक जानवारे हैं तामें प्रमाण ॥ ( शिष धनहरै शोकनहिं हरई । सो गुरु घोरनरकमें परई)। औकबारहूनी लिखि आये हैं ॥(छोड़िदेहु नरझेलिकझेला । बूड़े दोऊगुरुअरुचेला ॥ ) हे जीवतू तो अणु हैं एकनो ब्रह्म औजगनूप जो है माया तामें भुलाइरह्यो है याही ते तें जगत् में उत्पन्न भयो है अपने को मालिकमानिधन सुतादिको ताको अभिमान होइ है ।। ३ । ४ ।। हे जीव जो नेकहुपयान ते किये