पृष्ठ:बीजक.djvu/२६४

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(२१४) बीजक कबीरदास । उंदुर राजा टीकाबैठे विषहर करै खवासी । श्वान बापुरा धरनिठाकुरा विल्ली घरमें दासी॥ ३॥ उंदुर जोहे मूस सो तौ राजा भयो टीकामें बैट्यो औ बिषहर सर्प सो खवासी कैरैहै औ श्वान बापुरा जो हैं सोधरनि ठाकुरा कहे बस्तु लैके ढांकिके धरे है कहे भंडारींहै औ बिल्ली घरमें दासी है सो खानवालिनि है । अर्थात् उंदुरकों वह साहवको ज्ञान जाको दूरकै दिया है । उंदुरमूसको संस्कृत में कहै हैं सों उंदर कहे मूसतो जीवहै सो उंदुर शरीरको आपने मानिलियो है सोई राजाभयो अरु वाको खानबालो जोहै सर्पस कालहै । सो खवास भयो कहे क्षण पल घरी पहर वाको खात बाती तो होत नायसै सो ख्वास द्वैकै यहकाल वाकी आयुर्दायको खातई जाय है । औ नाना प्रकार की जो बिषयहैं तेई बारा है ताको खवावत जायहै । अरु श्वानकहे वह स्वानुभवानन्द जाहै सो बापुरा जो जीव ताकाधारकै ढांकि लियो है कहे साहबका ज्ञान नहीं होन देइहै औ विल्ली जो है षट् दर्शनकी बाणी सोघरमें दास वैरही है कहे नाना मतन में लगाँवैहै साहबकी भक्ति रस जो है सोई है गोरस ताको खाइ लेइ है ॥ ३ ॥ कागज कार कारकुड आगे बैल करै पटवारी। कहहि कबीर सुनो हो सन्तो भैसै न्या३ निवारी।।४।। कागज कार कहे लिखो कागज कार कुड जो बैलहै ताको आगे धरो है । सोई बैल पटवारी करैहै । सो कारो कागज कहे लिखो काजग जो गुरुवा लोगनकी बनाई पोथी तिनके आगेधरिके बैलजे गुरुवा लोगन के चेलाहैं ते पटवारी करै हैं । अर्थात् कायानगरी के बसैया जे मन बुद्धि चित्त अहंकार पृथ्वी अपू तेज वायु आकाश दशौ इन्द्रिय तिनको बिचारिके कि, कौन काकेआधीनहै ज्ञानरूपी द्रव्य तहसील करैहै । वा पटवारीकैकै द्रब्य राजाके इहां लेजाइहै । या ज्ञानरूपी द्रव्य आत्मा में राख्यो आइ अर्थात् काया नगरीके बसैया सब जीवात्मैते चैतन्यहैं यात आत्मै मालिक है । यह निश्चयकियो । सो कबीरजी कहै हैं हे संतो ! तुम सुनो वहां भैंसा जो है सोई न्याउ निबाहै, इहां भैंसाकहे गुरुवालोग जो हैं सोआपचहटामें परहैं औ चहळामें परोजों