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पृष्ठ:बीजक.djvu/२८५

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शब्द । ( २३५) एकादशी व्रतौ नहिं जानै भूत प्रेत हठि हृदय धरै। तजि कपूर गांठी विष बांधे ज्ञान गमाये मुगुध फिरै ४ छीजे शाहु चोर प्रतिपालै संत जननकी कूटकरै।। कहै कबीर जिह्वाके लंपट यहि विधि प्राणी नरक पैरै ५ राम गाइ औरन समुझावै हरि जाने विन विकल फि॥१॥ जा मुख वेद गायत्री उचरै तासु वचन संसार तरै ।। जाके पाँव जगत उठि लागै सो ब्राह्मण जिउ वद्ध रै॥२॥ श्रीरामचन्द्रको गोवै हैं औ औरनको संझुंझावै हैं औ सबके कलेश हरनवारे जे साहब हैं तिनको नहीं जानै कि, येई केश हार हैं हरि येई हैं । सो या नाना देवता नाना उपासना खोजत विकल फिरै हैं॥१॥अरु जाके मुखते वैद गायत्री जो वचन से उचैरै हैं वहीको तात्पर्यार्थ जे श्रीराम चन्द्र तिन्हैं जानिसंसार तरैहै. ताको अर्थ न जानते कि वेदगायत्रो तात्यार्थ ते श्रीरामचन्द्रहीको है हैं तामें प्रमाण ॥ “सर्ववेदाः सघोषाश्च सर्वेवणः स्वरा अपि । समात्रास्तुविसर्गाश्चसानुस्वाराः पदानेच । गुणसांदेमहाविष्णौ महातात्पर्य गौरवात् ॥ इतिमहाभारते ॥ जेब्रह्मादिकमें विष्णु हैं त विष्णु औ महा विष्णु श्रीरामचन्द्रही कहावै हैं तिनको तो नहीं जानै हैं । वेद गायत्री पढ़े हैं। औ वही मुखते हिंसा शिष्यनते प्रतिपादन करै हैं समुझाव हैं । औ आपहू हिंसा करै हैं । तिनहीं के पांय सब जगत् उठिलागै हैं अरु वाहीको कहा सब सुनै हैं ॥ २ ॥ अपना ऊँचनीचघर भोजन ग्रीण कर्म कर उदर भरै। ग्रहण अमावस डॉकढुकमार्गे कश्दीपक लियेकूपपरै॥३॥ | आपतौ जातिमें ऊचे हैं परंतु नीचके घर भोजन करै है औ जौन कर्म अपने को उचित नहीं है तैौन घिनहा कम कैकै पेट भरै है। औ ग्रहणमें अमावसमें दुकिढुकिमाँगे है कि, यह कुदान आन न लैजाय, हमैं लेईं । औ रामनाममुंहते है हैं सो नाम रूपी दीपक लीन्हे भ्रम कूपमें परे हैं ॥ ३ ॥ सक्छ । गुणसान विष्णु द हैं अब्रह्मादिकमें न हैं । वे औं आ