पृष्ठ:बीजक.djvu/२८७

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शब्द।

उत्स्य कच्छ वाराह स्वरूपी वामन नाम धराया। | केते बौद्ध भये निकलंकी तिनभी अंत न पाया ॥३॥ | केतक सिद्ध साधक संन्यासी जिन बनवास बसाया। केते मुनि जन गोरख कहिये तिनभी अंत न पाया ॥ ४ ॥ जाकी गति ब्रह्मै नहिं पाई शिवसनकादिक हारे। ताके गुण नर कैसे पैहौ कहै कबीर पुकारे ॥ ६ ॥ राम गुण न्यारो न्यारो न्यारो। अबुझा लोग कहांलों बूझै बूझनहार विचारो ॥१॥ परमपुरुष पर जे श्रीरामचन्द्र हैं तिनके गुण न्यारे न्यारे हैं । इहां तीन बार जो कह्यो ताते या आयो कि साहबके गुण, मायाके गुणते जीवात्माके गुणते ब्रह्मके गुण न्यारे हैं । कौनी रीतिसे न्यारे हैं कि, मायाके गुण नाशवान् हैं विचार किये मिथ्या हैं । औसाहबके गुण नित्यहैं साँचहैं, औ जीवात्माके गुण अणु हैं । औ साहब क गुण विभु औ ब्रह्मनिर्गुणत्वगुणब्रह्म है औ साहव निर्गुण सगुणके परे है सो या प्रमाणपीछे लिखआये हैं ॥ * अपाणिपादोनवनो गृहीता इत्यादि औब्रह्मसंबंधी अनुभवानंदजीवको होइ है औ साहब अनुभवातात है याते साहबक गुण सबते न्यारे हैं सो वो बात अबुझा लोग कहांल बूझै, कोई बुझनहार तो बिचारते जाउ ॥ १ ॥ केते रामचन्द्र तपसी सा जिन यह जग विटमाया। कत कान्ह भये मुरलीधर तिनभी अंत न पाया ॥२॥ केतन्यो रामचन्द्र हैं कौन रामचन्द्र ज तपस्वी ब्रह्म हैं तिनसों जगत् बिटमाया कहे बनायों है । अर्थात् जे नारायण रामावतार लेइहैं सो ब्रह्माते कैसे जग बनवायो । सो कथा पुराणन में प्रसिद्धहै कि, कमलमें ब्रह्मा भये, तब आकाशवाणी भई, " तप तप तब तपस्या कियो, तब नारायण प्रकटभये,