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(२८) कबीरजीकी कथा।
गंगापार डौंडिया खेरा । बैसनको तहँ है बसेरा ॥ तहँ कीन्हो विवाह सुत केरा । डास्यो चित्रकूट पुनि डेरा ॥ बीती तहाँ बहुत दिन राती । व्याघ्रदेवके भयो पनाती ॥ बहुत काल जब बीतत भयऊ । तब जयसिंह छोडि तनु दयऊ ।। कर्ण देव तब भयो नरेशा । तासु पुत्र केशरी सुवेशा ।। भयो केशरीसिंह जुमाना । तब कालिंजर कियो पयाना ॥ कालिंनर भूपति चेला । तासों कियो केशरी मेळा ।। लै बँदेल चतुरंग महाना । कीन्हो देश गहोरा थाना ।। बहुत काल लगि वसे गहोरा । चल्यो केशरी उत्तर ओरा ।। रह नवाब राजा तहँ भारी । कीन्ह अमल केशरी सारी ॥ सुनि नवाब दल ले चढि आयो । सुनि केशरी निसान बनायो । माध्यौ तहाँ महा संग्रामा । विजय लह्या केशरी ललामा ।। दोहा-पुनि नवाब तहँ आइक, कियो केसरी मेल ॥ अर्ध राज्य देवे लग्यो, स न लयो गुणिखेल ॥ २७॥ पुनि नवाब केशरी बघेला । गोरखपुर पर कीन्हो हेला ॥ तब नवाब अति प्रीति देवा । गोरखपुर महँ तेहि बैठायो ।। कहत भयो रक्षहु अब मोही । मह दल कोश लाज है तोही ॥ गोरखपुर वस केशरि भूपा । प्रगटायो य के पुत्र अनूपा ॥ इत नृप कर्ण देव मतिधीरा । चित्रकूटमाँ तज्यो शरीरा ॥ पुत्र केशरी को जो भयऊ । तेहिमल्लार नाम अस भयऊ ॥ सुत मळारके शारंग देवा । शारंगके भीमल हरि सेवा।। भीमल देव प्रचंड प्रतापी । अतिसुंदर हरि नामहि जाप ।। भीमलदेव पुत्र जो भयऊ । ब्रह्मदेव तेहिं नामहि ठयऊ ।। सो मगहरमाँ कीन्हो थाना । तहाँ वसत बहुकाल बिताना ।। ब्रह्मदेव लै कटक महाई । मिलेगहरवाननसों आई ॥ पुनि सिरनेतनदेश सिधारा । कीन्हो व्याह उछाह अपारा ॥