पृष्ठ:बीजक.djvu/३१०

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(२६०) बीजक कबीरदास । आलम दुनी सकल फिरि आये कलि जीवहि नहिं आना। ताही करिकै जगत उठावै मनमें मन न समाना ॥३॥ कहै कबीर योगी औ जंगम फीकी उनकी आसा। रामै राम रटै ज्यों चातक निश्चय भगति निवासी ॥४॥ कोइ बिरला दोस्त हमारा भाईरे वहुत का कहिये । माठन भजन सवारै सोइ ज्यों राम रखै त्यों रहिये ॥१॥ कबीरजी कहै हैं कि, हे भाइउ जीवौ ! और और बहुत मतवारे तो बहुत जीव हैं तिनका कहा कहिये । रामोपासक हमारो दोस्त जैसे हम गाढ़ भजन करिकै रामचन्द्र को देख रहे हैं ऐसे वह गाढ़ भजन करिकै रामचन्द्र को देख रहै । औ जैसे हम को राम राखै है तैसही रहै हैं ऐसे वहू रहै हैं । क्षणभर न भूलै ऐसा कोई बिरला है ॥ १ ॥ आसन पवन योग श्रुति संयम ज्योतिष पढ़ि वैलाना । छौदर्शन पाखंड छानवे येकल काहु न जाना ॥ २ ॥ अब बहुत मतवारे जे बहुत तिनको कहे हैं कोई आसन दृढ़ करैहै कोई पवन साथैहै कोई योग करैहै कोई वेद पर्दैहै । कोई संयम करै। कोई व्रत करैहै कोई ज्यातिष पढ़े है सो ये सब बैकलाइ गये । जो बैकल होइहै सो झूठको साँच जानैहै औ साँच को झूठ माँनैहे । सो छःदर्शन छानबे पाखण्डवारे ने ये सब एकल कहे एक स्वामी सबके परमपुरुष श्रीरामचन्द्र हैं। तिनको न जान्यो अथवा एकलकहे जौने करते मैं उपासना करौहाँ सो कोई नहीं जानै है ॥ २ ॥ आलम दुनी सकल फिरि आये कलि जीवहि नहिं आना। ताही करिके जगत उठावै मनमें मन न समाना ॥३॥ आलम कह दुनियां संसार सो सब जीव दुनियांमें फिर आये गुरुवा लोगनके यहाँपर या कल जौनेकरते मैं उपासना श्रीरामचन्द्रकी करौ हौं सो आपने जियमें न आनत भये नातेसंसार छुटिजाय साहब मिलैं जे नानामत आगेकहिआये ताही