पृष्ठ:बीजक.djvu/३२७

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शब्द । युः ४ सालेय ५ लार्य तिनले जवको लाभावै है कहे संब यह जानै है। कि इनकी दुई दैनाङहै । जो जौनमुक्तिकी चाहकरिकै उनके समीप जाइहै । ताके श्रीरामनामके उपदेश कारकै तान भाव बताइकै मुक्ति देइहैं । औ आज नही रहै हैं कि, साहयके गुणगाइकै छके रहै हैं ॥ २ ॥ मान सरोवर तटझे वासीरामवरण चित अंत उदासी।३।। | हंस ने ते मानसरोवरके तटकेवासी हैं अरु वे साधुकैसे हैं कि मनरूपी जो सरोवर हैं ताके लटके बासीहें कहे मनले भिन्न है रहै है जामें हंसक दशाहै साहबकी दीन ऐसाजा चित्मात्रआपनोः स्वरूपहै ताकी परमपुरुष श्रीरामचन्द्र तिनहीके चरणनमें लगाई राखैहैं अरुअंत उदासी कहे जो वह धोखा ब्रह्ममें अंह ब्रह्मास्मि मानिकै आत्माको अंत है जाइहै आपै ब्रह्म मानिलेइहै इहजो है आत्मा के अंत दैवको मन धोखा तेहितें उदासी कहे उदास है रहैहैं अथवा अंतजो है। संसार ताते उदास रहतं ।। ३ ।। झाग कुबुद्धि निकट नहिं आवै। प्रतिदिन हँसा दर्शन पावै४ नीर क्षीरको करै निवरा । कहे कबीर सोई जन मेरा ॥६॥ तिनके निकट कागरूपी जो कुवाद यह अज्ञान सो निकट नहीं आवै है तौ और मत कैसे आवै सो कबीरजी कै है हैं कि यहि भांतिने चलै है सो हंसशुद्धजीव प्रति दिन श्रीरामचन्द्र को दर्शन पावत रहै है सर्वत्र साहबको देखत रहैहै ॥४॥ जैसे हंस नीर क्षीरको निबेरा करै हैं तैसे हस जे साधु हैं ते असार जो है नाना उपासना नानाज्ञान तामें अमीसी जो वेद शास्त्र पुराणाादकनमें साहवकी उपासना ताको ग्रहण करै हैं औ सब असारको छोड़िदेयहै । सो कंबीरजी है। हैं कि, सोई जन मेरो है अर्थात् जे रामोपासक हैं तेई कबीरपंथी हैं और सब पाखंडी हैं जौने स्वरूपमें हंसदशाहै तौने स्वरूपमें साहबके स्फूर्ति काय नाम जंपेहें । तामेंप्रमाण ॥ *माढाजप न कर जप जिह्वा जप न राम । भेरासाई मोहिनदै मैं पाव विश्राम ॥ ५ ॥ इति चौंतीसवां शब्द माप्त ।। - --- --