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पृष्ठ:बीजक.djvu/३३९

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शब्द।। ( २८९) अथ बयालीसवां शब्द ॥ ४२ ॥ पंडित शोधि कहहु समुझाई जाते आवागमन नशाई ॥ अर्थ धर्म औ काम मोक्ष फल कौनदिशा वसभाई ॥ १ ॥ उत्तर दक्षिण पूरव पश्चिम स्वर्ग पतालके माहे। विन गोपाल ठौर नहिं कतहूं नरक जात धौं काहे ॥२॥ अन जानेको नरक स्वर्ग है हरि जानेको नाहीं।। जेहि डरको सब लोग डरतहैं सो डर हमारे नाहीं ॥ ३ ।। पाप पुण्य की शंका नाहीं स्वर्ग नरक नहिं जाहीं । कहै कबीर सुनो हो संतो जहँ पद तहां समाहीं ॥४॥ | वासना मायके योगते होइहै से माया जैनी प्रकारते छूटै है सो उपाय है हैं अरु अचारको वहां खंडन करिआये सो अब जौनी दशामें अचार नहीं है स कहै हैं ॥ पण्डित शोधि कहहु समुझाई। जाते आवा गमन नशाई॥ अर्थ धर्म औ काम मोक्ष फल कौन दिशा वस भाई ॥१॥ उत्तर दक्षिण पूरव पश्चिम स्वर्ग पतालके आहे। विन गोपाल ठौर नहिं कतहूं नरक जात धौं काहे ॥२॥ हे पंडित! तुम तो सारासारको बिचार करौहौ सो तुम शोधिकै मोसों समुझाय कहो जाते यह जीवात्माको आवागमन नशाइ । अर्थ धर्म काम मोक्ष ये फल कौनी दिशा में रहै हैं? ॥ १ ॥ उत्तर दक्षिण पूर्व पश्चिम स्वर्ग पाताल यहां सर्वत्र मैं ढूंढ़ि डारयों परन्तु विना गोपाल कहूं ठौर न देख्यों गोपाल कहे गों जो इन्द्रिय जड़ मनादिक तिनके चैतन्य करनवारे जे परमपुरुष श्रीरामचन्द्रहे तिनहींको सर्वत्र देखत भयो । विषय इन्द्रिनते देवता मनते मन जीवते जीव परमपुरुष श्रीरामचन्द्रले चैतन्यहै सो जीव उनको चित्त शरीर अरु मायाकाळ