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( २९२) बीजक कबीरदास । बूझडु पंडित करहु विचारी पुरुष अहै की नारी ॥ १ ॥ ब्राह्मण केरे ब्रह्मणी होती योगीके वर चेली । कलिमा पट्टि पढ़ि भई तुरुकिनी कलि में रहै अकेली।।२॥ सो हे पंडित! तुम बुझौ औ विचारकै काम करो यहमाया पुरुषरूपहै कि नारीरूपहै? यहमाया सबको लपेटि लियो है ॥ १ ॥ विद्या माया ब्राह्मणके तौ ब्राह्मणी वैकै बैठी है । ब्राह्मणकहै हैं कि, हम ब्रह्मको जानै हैं ॥ ब्रह्मनानाति ब्राह्मणः ॥ अरु घरमें ब्राह्मणो बैठायेरहै हैं, वाको स्त्रीको भाव करै हैं बंटीसों बेटी को भाव, वहिनीसें भगिनाको भाव माने हैं । सो कहो तो ब्रह्मभाव कबभये जे कहो जिनके स्त्री नहीं है तिनको तो ब्रह्मभाव ठहै तौ उनके ब्रह्म जानपनीरूप ब्राह्मणीकी गरूरी बना है । संयोगिनके तै चेली द्वै बैठी है। ॐ योगिनके योगीरूप है बैठी है। योगी महामुद्रा साधन करिकै बीयैकी उलटी गति कैदेइ । सो जब बृद्ध भये तब षोड़शी कन्या एक घरमें रातिभरि राखिकै संभोग कारकै उनको वीर्य लिंग दारते बँचिकै कपारमें चढाइ लेइहैं, तब आप तरुणद्वै जाइहैं वह षोड़शीकन्या मरिजाईहै। एते। बड़ो अनर्थकरै हैं। जे प्राणायाम कारकै प्राणचढाइ ले जाइहैं तिनके कुंडलिनी द्वै वैठी हैं। मैं मुसल्माननके जब विवाह होइहै तब निगाह सों निकाह कै कलिमापटिकै तुरुकिन हाइहै औ मुसलमान होइहै । सो ये उपलक्षणहैं अर्थात् ब्राह्मण में स्त्रीके साथ कर्मरूप हुँकै ॐ योगिनके दशमुद्रा रूपढेकै औ मुसलमाननमें निकाह कलम आदिदैक शरः अरूप बँकै अकेली मायाही रहतभई साहबके काम ये एक नहीं हैं॥२॥ वर नहिं वरै ब्याह नहिं करई पुत्र जन्म होनि हारी। कारे मुड़े यक नहिं छाँडै अवहूं आदि कुवारी ।। ३॥ वर कहे श्रेष्ठ जे हैं साहबके जाननवारे भक्त तिनको नहीं बरयो अर्थात् उनको स्पर्श विद्या विद्या ये देानको नहीं है । अरु खसम ब्रह्म है सो व्याह नहीं कॅरैहे काहेते कि, धोखाकी भंवरी नहीं पैरै । औ मायाको पुत्र जगत् है। जाक गर्भ धारण करैहै सो कारे कहे जिन के शिखाहै * हिंदू लोग ' औ