________________
शब्द् । ( ३०९ ) प्रकाश ब्रह्म नाहीमें सव रहै हैं । जब उत्पत्तिको समय भयो सुरति पायो तब । अपनेको लोकप्रकाश ब्रह्म मान्यो तब मनभयो । मनते इच्छाभई । तब यह ब्रह्मकहै हैं कि, मैं जीवात्मामें प्रवेश करिकै नामरूप कार हौं।सो जीवात्मामें प्रवेश कारकै नाम रूप जीवात्माके करतभयो याहीते याको साँई मानिकै चित् शक्ति नीव सासुर जो संसार तहां आवत भयो । सो वह ब्रह्मको खसम मानि लेबो धोखाहै काहेते कि, वह तो निराकारहै सो वाके संग न सोवत भई,न स्वाद पावत भई नानारूप धरत भई तेई यौवन हैं जे सपने की नाई जातभये सो जौनी भांति चित्शक्ति जब सांईके संग ससुरेमें आई सो लिखेहै अपनेको ब्रह्म मान्यो तब संसार की उत्पत्ति भई तामें प्रमाण कवीरजीके शब्दमंगलको ॥ ( सो उत्पत्ति ह, शून्य प्रलय कर ठाउं । तन छूटे कह जाइहौ, अकह बसायो गाउँ ।।१।।) जना चार मिलि लगनशोचाई जना पांच मिलि मंडप छाई। सखी सहेली मंगल गावें।दुख सुख माथे हरदि चढ़ाई॥२॥ जना चार कहे मन बुद्धि चित्त अहंकार ये जे अंतःकरण चतुष्टय हैं तेई मिलिकै लग्न शोचावतभे अर्थात् जीवको शरीरको लग्न लगावतभे। औ जनापांचें कहें पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश येपांचों तत्त्व मिलिंकै मंडप छावत भये अर्थात् शरीर बनावतःभये । औ सखी सहेलीजे हैं पांच कर्मेन्द्रिय ते मंगल गाव गाइबो कहाहै कि, रूप रस गंध स्पर्श शब्द ये विषयको लेनलंगे । और नाना प्रकारक ने पुण्य पापकी वृत्तिहैं तई कुवांरी कन्या सो नानाप्रकारके पुण्य पाप कराइकै दुःख सुख की हरदी जीवरूप दुलहिनिके माथे चढ़ाबै हैं ॥ ३ ॥ नाना रूप परी मन भावरि गांठी जोरि भई पति आई। अरधै दैदै चली सुवासिनि चौकहि रांड़ भई संग सई॥३॥ ॐ नानारूप कहे नानां भांति की जे वासनाहैं तिनहीकी या मनमैं भांवरि पारिगई है । औ चित् अचित्की गांठी परिगई ताहीते ब्रह्मको पति आई कहे पति आई गई है अर्थात् ब्रह्मको पति मानिलियो है कि, वह ब्रह्म मैहीं हौं । हेतु यहहै